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112 / सूक्तरत्नावली
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कारण) सज्जनों के विचार में अज (बकरा) माना गया है। वैसे अज का अर्थ ब्रह्मा भी होता है (नजातः इति अजः) श्यामात्मनि विशुद्धात्मा, संगतोऽनर्थसूचकः । प्रादुर्भूतं न किं पुष्पं, नयने हन्ति सौष्ठवम्? ||472||
पवित्र मन वाले व्यक्ति कलुषित मन वाले व्यक्ति के संग के कारण अनर्थकारी होता है। क्या खिला हुआ पुष्प कामिनी के नेत्रों के सौन्दर्य को नष्ट नहीं करता है ? अर्थात् करता है, क्योकि नेत्रों की तुलना कमल से की जाती है।
संवासिजनतुल्यं स्या,-वैदग्ध्यं महतामपि। द्विजेशोऽपि जडात्माऽभू-द्यद् गोविन्दपदे वसन्।।473 ||
___ महान् पुष्पों की विदग्धता (बुद्धिमत्ता) साथ में रहने वाले व्यक्तियों के समान हो जाती है। चन्द्रमाँ भी श्री गोविन्द पदाश्रित (आकाश आश्रित) होने के कारण जड़ात्मा हो गया।
दोष्मतामप्यसद्वस्तु, वस्तुतः सन्निरूप्यते । रूपं स्यमिति प्राहु-रनंगस्यापि यद्भुवः ।। 474||
दुर्गुण सम्पन्न व्यक्तियों की असत् वस्तु (अनुपयुक्त वस्तु) भी वास्तव में सत् (अच्छी) निरुपित की जाती हैं। अनंग (कामदेव) की सुन्दर आकृति न होने पर भी वह संसार में रम्य (सुन्दर) कहा जाता है।
संबन्धः सदृशामेव, प्रायशो दृश्यते दृढः । अभवद्भरवस्यैव, चण्डिका गृहिणी गृहे।। 475 ।।
समान प्रकृति वाले (समान स्वभाव या विचार वाले) व्यक्तियों का प्रेम-सम्बन्ध स्थायी होता है। भैरव का चण्डिका के मन्दिर मे निवास स्थायी हो गया।
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