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________________ 110 / सूक्तरत्नावली विशाल हृदय वाले व्यक्तियों के धन की न्यूनता होने पर भी . उनकी धनैश्वर्यता बड़ी विचित्र होती है। जैसे श्रेष्ठ बैल वाले किसान के एक ही श्रेष्ठ बैल होने पर उनकी ख्याति न्यून नहीं होती है। अचेतने नै व प्रीति-प्रवृत्ति निना धुवम् । किं स्थाणुना समं मैत्री, धनाधीशस्य नाऽभवत्? ||463।। धनवान या ऐश्वर्यशाली व्यक्तियों की अचेतन के साथ प्रेम करने की प्रवृत्ति निश्चय ही रहती हैं। क्या स्थाणु (भगवान शिव) के साथ धनाधीश् (कुबेर) की मित्रता नहीं हुई ? अर्थात् उनमें मैत्री भाव बना रहा। रतिडजुषा नीच,-मिलनेऽप्यतिशायिनी। न किं गोपकराश्लेषात्, पद्मिमी प्रीतिमत्यमूत्? ||464 ।। जड़ प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों की निम्नपुरुषों के साथ मित्रता होने पर परस्पर अत्यधिक प्रीति हो जाती है। क्या गोप (ष्ण) के हाथ का सम्पर्क पाकर कमलिनी प्रीतिमति न हुई ? अर्थात वह हस्त सम्पर्क-वश खिल उठी (प्रसन्न हुई)। धत्ते धनवति प्रीति, सदोषेऽपि महाजनः । व्यधान्मैत्री कुबेरेऽपि, धनाधीशे महेश्वरः ।। 465 ।। बड़े लोग धनवान् व्यक्ति में दोष होने पर भी उससे प्रीति रखते है। शंकरजी ने धन के स्वामी कुबेर से मित्रता कर ली। अधनित्वे सति प्रायः, स्त्रीः कुरूपैति वेश्मनि। दिग्वासाः प्राणिताधीशः, काली मेहे च गेहिनी।।466 || प्रायः निर्धनता की स्थिति में स्त्री घर में कुरूपा मानी जाती है। दिशा रूपी वस्त्र धारण करने वाले शंकर जी के घर मे गृहिणी कही जाती है। GONDORRONOODSONOBORDPRESIGNO8880000000000000000000000000000000000000000000685088086860956898808688000000000000000000000000000000000000000000000000558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001793
Book TitleSuktaratnavali
Original Sutra AuthorSensuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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