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निकलीं, जो अत्यन्त रूपवती, स्वर्णिम वस्त्रों से सुसज्जित तथा नृत्य के लिए तत्पर थीं। तत्पश्चात् सूर्याभदेव ने एक सौ आठ शंखों और एक सौ आठ शंखवादकों की, एक सौ आठ श्रृंगों - रणसिंगों और उनके एक सौ आठ वादकों की, एक सौ आठ शंखिकाओं और उनके एक सौ आठ वादकों आदि उनसठ वाद्यों और उनके वादकों की विकुर्वणा की । इसके बाद सूर्याभदेव ने उन देवकुमारों और देवकुमारियों को बुलाया। वे हर्षित हो उसके पास आये और वन्दनकर विनयपूर्वक निवेदन किया- हे देवानुप्रिय ! हमें जो करना है उसकी आज्ञा दीजिए। तब सूर्याभदेव ने उनसे कहा- हे देवानुप्रियो ! तुम सब भगवान महावीर के पास जाओ, उनकी प्रदक्षिणा करो, उन्हें वन्दन - नमस्कार करो और फिर गौतमादि निर्ग्रन्थों के समक्ष बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि प्रदर्शित करो तथा नाट्यविधि प्रदर्शन कर शीघ्र ही मेरी आज्ञा मुझे वापस करो। तदनन्तर सभी देवकुमार एवं देवकुमारियों ने सूर्याभदेव की आज्ञा को स्वीकार किया और भगवान महावीर के पास गये। भगवान महावीर को प्रणाम कर गौतमादि निर्ग्रन्थों के पास आये। वे सभी देवकुमार और देवकुमारियाँ पंक्तिबद्ध हो एक साथ मिले मिलकर सभी एक साथ झुके, फिर एक साथ ही अपने मस्तक को ऊपर कर सीधे खड़े हो गये। इसी क्रम में तीन बार झुककर सीधे खड़े हुए और फिर एक साथ अलग-अलग फैल गये। यथायोग्य उपकरणों, वाद्यों को लेकर एक साथ बजाने लगे, गाने लगे और नृत्य करने लगे। उन्होंने गाने को पहले मन्द स्वर से फिर अपेक्षाकृत उच्च स्वर से और फिर उच्चतर स्वर से गाया। इस तरह उनका वह त्रिस्थान गान त्रिसमय रेचक से रचित था । गुंजारव से युक्त था। रागयुक्त था। त्रिस्थानकरण से शुद्ध था। गूँजती वंशी और वीणा के सस्वरों से मिला हुआ था। करतल, ताल, लय आदि से मिला हुआ था। मधुर था। सरस था । सलिल तथा मनोहर था । मृदुल पादसंचारों से युक्त था। सुननेवालों को प्रीतिदायक था। शोभन समाप्ति से युक्त था। इस मधुर संगीत गान के साथ-साथ वादक अपने-अपने वाद्यों को भी बजा रहे थे। इस प्रकार वह दिव्य वादन एवं दिव्य नृत्य आश्चर्यकारी होने से अद्भुत तथा दर्शकों के मनोनुकूल होने से मनोज्ञ था। दर्शकों के कहकहों से नाट्यशाला को गुंजायमान कर रहा था ।
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तत्पश्चात् नृत्य-क्रीड़ा में प्रवृत्त उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने भगवान महावीर एवं गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों आदि के समक्ष स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण इन आठ मंगलद्रव्यों का आकार रूप दिव्य नाट्याभिनय दिखलाया। तत्पश्चात् दूसरी नाट्यविधि प्रस्तुत करने के
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