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________________ क्या तत्त्वार्थसूत्र स्त्रीमुक्ति का निषेध करता है? : ६७ का अध्ययन आवश्यक है। सभी कषायों एवं कर्मों का पूर्णतः क्षय ही मुक्ति की अनिवार्य शर्त है, जिसे उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में भी प्रतिपादित किया है। ___ पुन: अपने मत की पुष्टि हेतु भाई रतनचन्द्र जी लिखते हैं कि 'दूसरी बात यह है कि १४ पूर्वो के (शाब्दिक) अध्ययन के बिना उनका अर्थबोध उन्हीं ऋषियों को होता है जिन्हें प्रज्ञाश्रमणत्वऋद्धि (लब्धि) प्राप्त होती है। किन्तु दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों आम्नायों के आगमों में स्त्रियों को सभी प्रकार की लब्धियों का निषेध किया गया है।' आदरणीय भाई रतनचन्द्रजी का यह कथन भी प्रमाण पुरस्सर नहीं है। प्रथमतः इस सम्बन्ध में उन्होंने किसी आगम या आगमतुल्य ग्रन्थ का प्रमाण ही नहीं दिया है। जहाँ तक मेरी जानकारी है श्वेताम्बर मान्य अर्धमागधी आगमों में एवं दिगम्बर परम्परा में मान्य आगमतुल्य ग्रन्थों, यथा कसायपाहुड, षड्खण्डागम, मूलाचार, भगवती-आराधना आदि में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है कि 'स्त्रियों को किसी भी प्रकार की लब्धि नहीं होती है।' तिलोयपण्णत्ति में मात्र यह कहा गया है कि 'श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तराय के उत्कृष्ट क्षय या उपशम से प्रज्ञाश्रमणत्व ऋद्धि उत्पन्न होती है, जिससे वह चौदह पूर्वो के विषयों को, सर्वश्रुत और उनके अध्ययनों को जान लेता है।' (४/१०/१७-१८) किन्तु इससे यह तो सिद्ध नहीं होता है कि स्त्रियों को प्रज्ञाश्रमण ऋद्धि नहीं होती है। जिस श्वेताम्बर प्रवचनसारोद्धार ग्रन्थ का सन्दर्भ दिया है, वह आगम ग्रन्थ नहीं है, दूसरे वह पर्याप्त परवर्ती (१३-१४वीं शती) काल का ग्रन्थ है। पुनः उसमें भी भव्य स्त्रियों के लिए जिन लब्धियों का निषेध किया है, वे हैं- अरिहंत, चक्रवर्ती बलदेव, वासुदेव, संभिन्न श्रोतृत्व, चारणलब्धि, चौदहपूर्वीत्व, गणधर, पुलाक और आहारक। पुनः प्रथमत: श्वेताम्बर परम्परानुसार इन लब्धियों का भी एकान्त निषेध नहीं माना गया है। यहाँ अपवाद सम्भव माने गये हैं। अन्यथा उनके ही आगम ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र में वर्णित मल्ली का तीर्थंकर होना खण्डित हो जायेगा। अतः प्रवचनसारोद्धार में जो निषेध है, वह भी एकान्त निषेध नहीं है। साथ ही प्रवचनसारोद्धार की जिस गाथा (१५०६) का सन्दर्भ उन्होंने दिया है, वह गाथा भी स्त्रियों में न तो प्रज्ञाश्रमणत्व लब्धि का निषेध करती है और न वादलब्धि का (जिसका उल्लेख प्रो. रतनचन्द्रजी ने अपने इसी लेख के अग्रिम भाग में किया है।) प्रवचनसारोद्धार में जिन अट्ठाईस लब्धियों का उल्लेख है, उनमें से स्त्रियों के सम्बन्ध में मात्र उपरोक्त दस लब्धियों का ही निषेध है, शेष का निषेध नहीं है। अतः प्रो. रतनचन्द्रजी किस आधार पर यह कहते हैं कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001787
Book TitleJain Dharma Darshan evam Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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