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आचारांगसूत्र की मनोवैज्ञानिक दृष्टि : ५९
है। इसके अतिरिक्त हिंसा के कारणों को निर्देश करते हुए कुछ कर्म प्रेरकों का उल्लेख है यथा जीवन जीने के लिए, प्रशंसा और मान-सम्मान पाने के लिये, जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए, शारीरिक एवं मानसिक दुःखों की निवृत्ति हेतु प्राणी हिंसा करता है (१/१/४/३७)। आचारांगसूत्र का सुखवादी दृष्टिकोण __आधुनिक मनोविज्ञान हमें यह बताता है कि सुख सदैव अनुकूल इसलिये होता है कि उसका जीवन-शक्ति को बनाये रखने की दृष्टि से दैहिक मूल्य है
और दुःख इसलिये प्रतिकूल होता है कि वह जीवन-शक्ति का ह्रास करता है। यही सुख-दुःख का नियम समस्त प्राणीय व्यवहार का चालक है। आचारांगसूत्र भी प्राणीय व्यवहार के चालक के रूप में इसी सुख-दुःख के नियम को स्वीकार करता है। (आचारांगसूत्र १/२/३/८१)। अनुकूल के प्रति आकर्षण और प्रतिकूल के प्रति विकर्षण यह इन्द्रिय स्वभाव है। अनुकूल विषयों की ओर प्रवृत्ति, प्रतिकूल विषयों से निवृत्ति यह एक नैसर्गिक तथ्य है, क्योंकि सुख अनुकूल और दुःख प्रतिकूल होता है, इसलिये प्राणी सुख को प्राप्त करना चाहता है और दुःख से बचना चाहता है। वस्तुतः वासना ही अपने विधानात्मक रूप में सुख और निषेधात्मक रूप में दुःख का रूप ले लेती है जिससे वासना की पूर्ति हो वही सुख और जिससे वासना की पूर्ति न हो अथवा वासनापूर्ति में बाधा उत्पन्न हो वह दुःख। इस प्रकार वासना से ही सुख-दुःख के भाव उत्पन्न होकर प्राणीय व्यवहार का नियमन करने लगते हैं। दमन का प्रत्यय और आचारांगसूत्र
सामान्यतया आचारांगसूत्र में इंद्रिय-संयम पर काफी बल दिया गया है वह तो शरीर को सुखा देने की बात भी कहता है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या पूर्ण इन्द्रिय-निरोध संभव है? आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से इंद्रिय व्यापारों का निरोध एक अस्वाभाविक तथ्य है। आँख के समक्ष जब उसका विषय प्रस्तुत होता है तो वह उसके सौन्दर्य दर्शन से वंचित नहीं रह सकती। भोजन करते समय स्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। अतः यह विचारणीय प्रश्न है कि इन्द्रिय-दमन के सम्बन्ध में क्या आचरांगसूत्र का दृष्टिकोण आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सहमत है? आचारांगसूत्र इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यही कहता है कि इंद्रिय व्यापारों के निरोध का अर्थ इंद्रियों को अपने विषयों से विमुख करना नहीं, वरन् विषय सेवन के मूल में जो निहति राग-द्वेष है उसे समाप्त करना है। इस सम्बन्ध में उसमें जो मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया
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