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नैतिक एवं धार्मिक चिन्तन में प्रमुखतया समरूपता
__जहाँ तक धार्मिक, नैतिक एवं आचार-व्यवस्था सम्बन्धी प्रश्नों की बात है तो जैन, बौद्ध और हिन्दू परम्परा में समरूपताएँ ही अधिक हैं। यद्यपि आचार के क्षेत्र में भगवान बुद्ध ने मध्यम-मार्ग का प्रतिपादन कर कठोर तपश्चर्या रूप देह-दण्डन और भोगों के प्रति अति आकर्षण से बचने का निर्देश किया। इस सम्बन्ध में जैनों की स्थिति भिन्न रही, उन्होंने आचार के क्षेत्र में कठोरता और विचार के क्षेत्र में अनेकांतवाद के माध्यम से उदारता का परिचय दिया। इस सम्बन्ध में विशेष तुलनात्मक अध्ययन मैंने अपने शोधग्रन्थ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' में किया है। आचारगत प्रश्नों पर जैन और बौद्धों में समरूपता ही अधिक है, त्रिपिटक और जैनागमों की सैकड़ों गाथाएँ अर्थतः या शब्दत: समान ही हैं। जैनों ने आचारशास्त्र का मुख्य लक्ष्य राग-द्वेष का त्याग, बौद्धों ने तृष्णा का त्याग और हिन्दू परम्परा ने आसक्ति का त्याग माना है।
संदर्भ
१. षड्दर्शनसमुच्चय, सम्पादक डॉ. महेन्द्रकुमार, प्रस्तावना, पृ. १४। २. वही, पृ. १९। ३. समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पृ. ४३।
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