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________________ जैन कथा-साहित्य:एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण : १२३ में जैन कथाओं और उपन्यासों के लेखन में हिन्दी कथाशिल्प को ही अपना आधार बनाया गया है। सामान्यत: जैन कथाशिल्प की प्रमुख विशेषता नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना ही रही है, अतः उसमें कामुक कथाओं और प्रेमाख्यानकों का प्रायः अभाव ही देखा जाता है, यद्यपि वज्जालग्गं तथा महाकाव्यों के कुछ प्रसंगों को छोड़ दें तो प्रधानता नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना की ही रही है। यद्यपि कथाओं को रसमय बनाने के हेतु कहीं-कहीं प्रेमाख्यानकों का प्रयोग तो हुआ है फिर भी जैन लेखकों का मुख्य प्रयोजन तो शान्तरस या निर्वेद की प्रस्तुति ही रहा है। जैन कथाओं का मुख्य प्रयोजन जैन कथा-साहित्य के लेखन के अनेक प्रयोजन रहे हैं, यथा१. जन सामान्य का मनोरंजन कर उन्हें जैन धर्म के प्रति आकर्षित करना। २. मनोरंजन के साथ-साथ नायक आदि के सद्गुणों का परिचय देना। ३. शुभाशुभ कर्मों के परिणामों को दिखाकर पाठकों को सत्कर्मों या नैतिक आचरण के लिए प्रेरित करना। ४. शरीर की अशुचिता एवं सांसारिक सुखों की नश्वरता को दिखाकर वैराग्य की दिशा में प्रेरित करना। ५. किन्हीं आपवादिक परिस्थितियों में अपवाद मार्ग के सेवन के औचित्य और अनौचित्य को स्पष्ट करना। ६. पूर्व भवों या परवर्ती भवों के सुख-दुःखों की चर्चा के माध्यम से कर्म सिद्धान्त की पुष्टि करना। दार्शनिक समस्याओं का उपयुक्त दृष्टान्त एवं संवादों के माध्यम से सहज रूप में समाधान प्रस्तुत करना, जैसे- आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि के लिए रायपसेणियसुत्त के कथानक में राजा के तर्क और केशी द्वारा उनका उत्तर। इसी प्रकार क्रियमान कृत या अकृत है- इस सम्बन्ध में जमाली का कथानक और उसमें भी साड़ी जलने का प्रसंग। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन कथा-साहित्य बहुउद्देशीय, बहुआयामी और बहुभाषी होकर भी मुख्यतः उपदेशात्मक और आध्यात्मिक रहा है। उसका मुख्य उद्देश्य निवृत्तिमार्ग का पोषण ही है। वह सोद्देश्य और आध्यात्मिक मूल्यों का संस्थापक रहा है और लगभग तीन सहस्राब्दियों से निरन्तर रूप से प्रवाहमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001787
Book TitleJain Dharma Darshan evam Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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