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________________ 302 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature संवत अठारा माहे गुणपचासे रे, शुदि सप्तमी वेसाष बुध उलासे रे । करीय प्रतिष्ठा सार सुभ मोरती रे, नयर प्रतापगढ मांहे आनंद वरती रे ।। ६ ।। सिवनो तीर्थ सुठांम दीपेसरजी रे, पासे प्रभु परमेस संषेसरजी रे । वावी, सरोवर, थांन, वाडी सोहे रे, तिहां प्रासाद उत्तंग जन-मन मोहे रे ।। ७ ।। वाडीलीया रघुनाथ माणकचंदथी रे, थयी जिनधर्म उछाह संघ सानिधथी रे । हमीरविजय गुरु-राय उत्तम शिष्ये रे, पदमावती धरणेंद्र फल्या परत्यष्य रे ।। ८ ।।. (४) संषेसर स्तवन श्रीमोहनकृत संषेश्वर जिन-राया, हो मन भाया, संघ समस्तने, सुण स्वामी अरदास । सुणीय, सुण मन जांणी हो मत काढो, काना आगले, मुज दीज्यो विसवास ।। सं. ।। १ ।। कासी देश वाणारसी, हो बहु सरसी, नगरी राजनी, जनम्या जिहां जीन-राय । अश्वसेन कुलनंदा, हो आंनदा, वामा मातजी, सर्प-लंछण जस पाय ।। सं. ।। २ ।। संघ सइ उमाही, हो उछाही, आवे राजने, चरण लगाडी भाल । पास जीनंदने सेवे, हो अति प्रेमे, रोगादिक समे, होवे मंगल-माल ।। सं. ।। ३ ।। मात पिता अरु भ्राता, हो नही त्राता, सगपण कारमो, नही कोई सुष-दातार । मोहनी कर्मने भोगे, हो संयोगे, ए संसारमां, मिलियो शुं किरतार ।। सं. ।। ४ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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