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________________ 268 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature बन्द कर दिये गये, क्योंकि जिन लोगों ने वैष्णवधर्म स्वीकार किया था वे लोग अवशेष जैनों को वैष्णव-धर्मानुयायी बनाने के लिये आग्रह तथा दबाव डाला करते थे। जहाँ-जहाँ पर जैनों की बस्ती थोड़ी थी और वैष्णव धर्मानुयायियों का प्राबल्य था - वे अधिक संख्या में विद्यमान थे - वहाँ पर जैनलोगों को कन्या-प्राप्ति के लिये अपना प्राचीन धर्म छोड़ना पड़ता था। तो भी उन लोगों का अन्तःकरण अपने पुराने धर्म से विरक्त हो जाता था, ऐसा नहीं किन्तु बाह्य कौटुम्बिक कारणों से उन लोगों को अन्य धर्म स्वीकार करना पड़ता था । मैंने ऐसा भी सुना है कि सफ़ेद केश वाले वृद्ध लोग बारम्बार जैन मुनि महाराजों के निकट आकर रोते-रोते स्वीकार करते हैं कि कुछ वर्ष पहले हम लोगों को पूर्वोक्त प्रकार के व अन्य आर्थिक कष्टों के कारण हमारे पूर्वजों के प्रियधर्म को छोड़ना पड़ा और हमारी सन्तति का अन्यधर्मियों के संस्कारों में पालन-पोषण होते हुए देखकर दुःख पैदा होता है। इसका परिणाम यह हुआ कि अन्तिम 100 वर्षों में ऐसी बहुत सी ज्ञातियाँ, जो पहले शुद्ध जैन जातियाँ थीं, आज कल 'जैन- ज्ञाति' कहलाने योग्य नहीं रहीं। इन ज्ञातियों में जैनों का मात्र छोटा-सा भाग अवशेष है, जो कि कम होता जाता है। यही परिस्थिति मोद, मनियार तथा भावसार वणिक् ज्ञातियों की है। कुछ वर्ष पहले बड़नगर के नागर वणिकों में जो शेष जैन थे, उन्होंने भी वैष्णवधर्म स्वीकार कर लिया। क्योंकि अपनी जाति वाले जैनों से कन्यायें प्राप्त नहीं कर सकने पर, इन नागर वणिक् जैनों ने बीसा श्रीमाली ज्ञाति के जैन लोगों से विनती की थी कि हम लोगों को अपनी मंडली में सम्मिलित करो एवं हमारे साथ भोजन तथा कन्या - व्यवहार भी प्रारम्भ करो। परन्तु संकुचित विचार वाले बीसा श्रीमाली जैन वणिकों ने अपने स्वामीभाइयों को साफ इनकार कर दिया। इस कारण से अन्तिम नागर जैनों को जैनधर्म छोड़ना पड़ा। मेरे को यह बात पूज्यपाद स्व. जैनाचार्य श्रीमद्बुद्धिसागर सूरिजी के उपर्युक्त ग्रन्थ से मालूम हुई है। इसी प्रकार दक्षिण की लिंगायत ज्ञाति व बंगाल की सराक ज्ञाति, जो किसी समय में शुद्ध जैन ज्ञातियाँ थी, उनमें आजकल एक भी जैन पाया नहीं जाता है। इससे मालूम होता है कि मध्य एवं उत्तर भारतवर्षीय जैन ज्ञातियों तथा धर्मशाखाओं की अयोग्य सामाजिक व्यवस्था तथा परिस्थिति के कारण यह दशा हुई कि अन्तिम वर्षों में बहुत से जैन लोग धर्मभ्रष्ट हुए । इसके बारे में कई एक अन्य कारण भी हैं । उनमें से एक कारण यह भी है कि बहुत से जैन स्तुति पाठादि बिना समझे बोलते हैं और विविध क्रियाओं का उनका रहस्य समझे बिना आचरण करते हैं और कठोर तपस्याएँ भी कारण समझे बिना करते हैं। इस सबका कारण समझने वाली एवं ज्ञान देने वाली धार्मिक संस्थाएँ बहुत कम हैं। अच्छी स्थिति वाले धनिक जैन श्रावक अपने धार्मिक उत्सव पर थोड़ा, पूजा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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