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________________ 264 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature परम्परा और क्रियाकाण्डादि से हिन्दू, पारसी, मुसलमान धर्मों का आचरण करते हैं और उन धर्मों को छोड़ने का विचार भी नहीं करते हैं, तो भी अपने तत्त्व-ज्ञान एवं नैतिक आदर्श का अनुसरण करके सच्चे जैन कहे जा सकते हैं। ऐसे और भी अन्य धर्मी लोग विद्यमान हैं, जो अपने पुराने ( परम्परागत ) धर्म में लवलीन होने पर भी नियमित रीति से जैन मन्दिरों में दर्शनार्थ जाते हैं, जैन-मूर्तियों की पूजा, पाठादि दैनिक कार्य करते हैं और सच्चे जैनों की भाँति उत्साहपूर्वक जैनों के कतिपय नियम पालते हैं। इस वस्तुस्थिति के दृष्टान्त के तौर पर मैं उदयपुर के नामदार महाराणा साहब तथा कुँवर साहब के प्रसंग का उल्लेख करती हूँ, जो कट्टर हिन्दू होने पर भी उदयपुर के समीपवर्ती केशरिया जी के प्रसिद्ध मन्दिर का विधिपूर्वक आम पब्लिक में पूजन व दर्शन करते हैं। ऐसे और भी कई एक राजा-महाराजा हैं, जो जैन मुनिराजों के रक्षक तथा भक्त कहलाये जा सकते हैं। वे लोग जैन मुनिराजों की देशना से प्रफुल्लित होते हैं, व मुनिराजों की प्रेरणा अथवा उपदेश के प्रभाव से जैन धर्म के सिद्धान्तों का अनुसरण करके स्वयं जीवरक्षादि के नियमों का पालन करते हैं और अपनी प्रजा से पालन कराने के लिये 'अभारी पटह' की उद्घोषणा करते हैं। अब यह मालूम होता है कि एक ओर से जैनधर्म में अनुरक्त रहना और उसके नैतिक सिद्धान्तों के अनुसार जीवन व्यतीत करना और दूसरी ओर जन्म एवं संस्कार से जैन होना, इन दो विषयों में अधिक भिन्नता नहीं है। यदि दक्षिण भारत की परिस्थिति पर दृष्टिपात करेंगे तो सचमुच इतना अन्तर दृष्टिगोचर नहीं होगा। उस प्रदेश के शान्त-हृदयी बुद्धिशाली द्रविड-जैनों ने दिगम्बर जैनधर्म का, जो कि जैनधर्म की मुख्य दो शाखाओं में से एक है, प्राचीन समय से ही पवित्रतापूर्वक आचरण तथा रक्षण किया है। इन महानुभावों का जैनधर्म विषयक जो मान तथा क्रियाकाण्डादि हैं, उन सबका आधार मौखिक परम्परा ही है, अर्थात् पिता अपने पुत्र को, माता अपनी पुत्री को सैद्धान्तिक उपदेशक के बगैर ही उस धर्म के सिद्धान्तों का अध्ययनअध्यापन करते थे और अब भी करते हैं। उन लोगों के लिये जैनधर्म एक नैतिक आदर्श तथा सच्चे तत्त्वज्ञान की एक चाभी-कञ्जिका है। इसलिये दक्षिण भारत के समस्त दिगम्बर अपने धर्मबन्धनों द्वारा गाढ़-घनिष्ट-प्रेमरूपी सांकल में परस्पर इस प्रकार से बँधे हुए हैं कि भिन्न-भिन्न स्थानों में रहते हुए तमिल, तेलुगू, कनडी और मलयालमादि भित्र-भिन्न भाषायें तथा उच्च व नीच गोत्र होने पर भी वे सब जातियाँ एक ही संघ के सदस्य के समान मालूम होती हैं, अर्थात् उन लोगों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। वे संघ, जाति व पेटा जाति आदि की मत-भिन्नता से अनभिज्ञ हैं और उनमें सर्वसाधारण भोजन-व्यवहार एवं कन्या-व्यवहार प्रचलित हैं। वे पवित्र निष्कपट-हृदयी तथा धर्म-प्रेमी दिगम्बर जैन जैन-कुल में जन्म लेने वाले और जन्म नहीं लेने वाले प्रत्येक जैन के साथ भाई तथा मित्र जैसा व्यवहार करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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