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________________ आधुनिक जैन समाज की सामाजिक परिस्थिति* जैनधर्म भारतवर्ष के अति प्राचीन धर्मों में से एक है, जो बौद्ध-धर्म से भी प्राचीन है और प्रायः वर्तमान अभिप्राय के अनुसार अति प्राचीन हिन्दूदर्शन से भी पूर्व अवस्थिति वाला है। यद्यपि जैनधर्म ने बौद्धमत की भाँति शक्ति एवं विस्तीर्णता नहीं पायी थी और भारतवर्ष की सीमा का भी उल्लंघन नहीं किया था, अर्थात् बौद्धमत की भाँति भारतवर्ष के अतिरिक्त चीन, जापान आदि देशों में जैनधर्म का प्रचार नहीं हुआ था, तो भी इस धर्म ने एक समय भारतीय धार्मिक जीवन पर बड़ा प्रभाव डाला था, क्योंकि किसी समय में राजा-महाराजा सरदार लोग भी इस धर्म के अनुयायी थे और इस धर्म ने अपने अहिंसात्मक सिद्धान्तों का प्रभाव अन्य धर्मों पर डाला था। फिर भी अन्तिम शताब्दियों में इसका प्रभाव न्यून हो गया है। इस धर्म के वर्तमान निश्चित अनुयायियों की संख्या प्रति मनुष्य-गणना' ( Census Report ) के अनुसार न्यूनता के मार्ग की ओर प्रयाण करते-करते 11,00,000 ( एकादश लाख ) की अन्तिम जघन्य स्थिति तक पहुंची है। परन्तु उपर्युक्त उल्लेखानुसार जैनधर्म के की अवनति हो रही है और जैनधर्म ने भारतवर्ष के आत्मिक-धार्मिक जीवन पर अपना प्रभाव छोड़ना बन्द कर दिया है, ऐसी कल्पनायें करना ठीक नहीं है। बात यह है कि जैनधर्म, उन मनुष्यों के लिये जो कि ज़ाहिरा तौर से जैन हैं अर्थात् जो जन्म और परम्परा से जैन हैं, उनकी ही मर्यादा में नहीं है। किन्तु वास्तविक रीति से जैन-धर्मानुयायियों की संख्या मनुष्यगणना के कथन की अपेक्षा से अधिक प्रमाण वाली है। जैनधर्म के सिद्धान्तों में, सम्भवतया जिनका कि अनुमान बाह्य लोग कर सकते हैं उनसे अधिक लोग आ सकते हैं। क्योंकि जैनधर्म का, ऐसे विद्वान्, विवेकी एवं उत्साहसम्पन्न जैन मुनिराजों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर निरन्तर प्रचार हुआ और आजकल भी होता है, जो मुनिराज मात्र अशिक्षित वर्ग के लोगों को ही नहीं, किन्तु ख़ास करके समग्र देश के शिक्षित लोगों को भी आकर्षित करते हैं और अन्य धर्मानुयायियों में भी अपने धर्म के प्रति प्रेम, मान और उत्साह उत्पन्न कराते हैं। ऐसे बहुत से मनुष्य हैं, जो यद्यपि जन्म, * Published in Anekanta, Varsa 1, Kirana 8, 9, 10. Translator Bhanwaralal Lodha. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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