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________________ Jaina Sal aur Mahākāla-Mandira 235 'वसकुडंग' और 'कुडंगीसर' के सम्बन्ध में आगे विचार किया जायेगा। मूल आगम के पश्चात् प्रस्तुत वृत्तान्त का सबसे प्राचीन उल्लेख श्री जिनदासगणि महत्तर कृत 'आवश्यकचूर्णि' में प्राकृत गद्य में उपलब्ध है ( देखिए 'श्रीमदावश्यकसूत्र' रतलाम ई. सन् 1939, उत्तरभाग, पृ. 157 )। इस ग्रन्थ के रचनाकाल की कल्पना इस बात से की जा सकती है कि इसी जिनदासगणि कृत निशीथचूर्णि' शक 518 अर्थात् ई. सन् 676 में रचित है। ( देखिए श्री पं. सुखलाल और बेचरदास की भूमिका, सन्मतितर्क, पृ. 3 )। प्रस्तुत 'आवश्यकचूर्णि' में अवन्तिसुकुमाल की माता 'भद्दा सेट्ठिभज्जा', अर्थात् 'भद्रा श्रेष्ठिभार्या', उनकी बत्तीस सुयौवना पत्नियाँ, उनके धर्मगुरु 'सुहत्थि', अर्थात् आर्य सुहस्ती आचार्य अशोक पौत्र जैन सम्राट् सम्प्रति के प्रतिबोधक, ( देखिए मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण और जैनकालगणना', नागरी प्रचारिणी पत्रिका 10 और 11 से उद्धृत, जालोर, सं. 1987, पृ. 77 ), और पुत्र, इतने पात्र अधिक पाए जाते हैं। अवन्तिसुकुमाल के मृत्यु का स्थान 'मसाणे कंथारकुडंग' अर्थात् 'श्मशान में कंथारकुडंग' इन शब्दों में वर्णित है, जिनकी चर्चा आगे की जायगी। महात्मा के मरण के पश्चात् गन्धोदक बरसने का प्रसंग भी उल्लिखित है, यद्यपि गन्धवती नाम नहीं दिया गया है। उनकी माता और बत्तीस पत्नियों में इकतीस साध्वी-दीक्षा ग्रहण करती हैं। बत्तीसवीं गर्भवती तीसे पुत्तो तत्थ देवकुलं करोति। तं इयाणिं महाकालं जातं। लोकेणं परिग्गहितं। अर्थात् “उनके पुत्र ने वहाँ एक देवमन्दिर बनाया। वह अब महाकाल बन गया। ( अन्यधर्मी ) लोगों ने उसको ग्रहण कर लिया।" ___ श्री हरिभद्र सूरि की 'आवश्यकवृत्ति' में भी प्रस्तुत वृत्तान्त प्रायः अक्षरशः पाया जाता है। इस वृति का रचना-काल भी ई. सन् 650-700 के आसपास समझा जा सकता है, अर्थात्, श्री जिनदासगणि और श्री हरिभद्रसूरि दोनों ने एक ही प्राचीन आदर्श ग्रन्थ का उपयोग किया होगा, ऐसा प्रतीत होता है। प्रमुख भिन्नता यह है कि यहाँ महात्मा की माता का नाम 'भद्दा' के स्थान पर 'सुभद्दा' (सुभद्रा) दिया गया है ( देखिए 'श्रीमदावश्यकसूत्रोत्तरार्ध पूर्वभाग', आगमोदय-समिति, ई. सन् 1917. पृ. 670)। इसके पश्चात् अवन्तिसुकुमाल का वृत्तान्त सुप्रसिद्ध 'आवश्यक कथाओं' में उपलब्ध है। वहाँ की कहानी, जो कि मुझे मात्र अभिधानराजेन्द्रकोश में ( 'अणिस्सिओवहाण' शब्द के नीचे ) मिली, संस्कृत पद्य में है, और उसका विवरण पूर्वोक्त कहानी के साथ ठीक-ठीक मिलता है। मृत्युस्थान 'कन्थारिकावन' और माता का नाम 'सुभद्रा' है। अन्तिम पद्य नीचे के अनुसार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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