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________________ 230 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature अनुसार वह ‘गूढ़महाकालप्रासाद' और श्री भद्रेश्वर सूरिकृत 'कथावली' (ई. सन् 1235 के पूर्व ), श्री प्रभाचन्द्र सूरि कृत 'प्रभावकचरित' ( ई. सन् 1278 ) तथा श्री जिनप्रभ सूरि कृत 'विविधतीर्थकल्प' अथवा 'कल्पप्रदीप' ( ई. सन् 1333 ) के अनुसार 'कुडंगेसर', 'कुडंगेश्वर', किंवा कुडुंगेश्वर महादेव का मन्दिर था। इन नामों की चर्चा आगे की जायेगी । यहाँ इतना समझ लेना पर्याप्त होगा कि वह मन्दिर महादेव ही का था । मन्दिर में भिक्षुक ने शिव-विग्रह को नमन नहीं किया । रुष्ट होकर श्री विक्रमादित्य ने इसका कारण पूछा। उत्तर देते हुए श्री सिद्धसेन दिवाकर ने 'लिंगभेद' और उसे परिणामस्वरूप अप्रीति होने का भय बताया। ऐसी अनहोनी बात सुनकर साहसांक नरेश ने अधीर होकर आज्ञा दी कि 'तुरत ही नमस्कार करो। इसका परिणाम मेरे सिर पर हो' । तब श्री सिद्धसेन दिवाकर ने ( जिनका अपरनाम कुमुदचन्द्र भी बताया जाता है ) 'कल्याणमन्दिरस्तोत्र टीका' के अनुसार अपने सुप्रसिद्ध संस्कृत 'कल्याणमन्दिरस्तोत्र' द्वारा तेईसवें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ के नाम से सच्चिदानन्दरूप वीतराग जगदीश की स्तुति सुनाते हुए आदरभाव से देवता को नमन किया। उक्त स्तोत्र अभी भी जैनियों में ( चाहे वे दिगम्बर हों या श्वेताम्बर ) विशेष पवित्र माना जाकर नित्यपाठ के रूप में बोला जाता है । 'विविधतीर्थकल्प', 'कथावली', 'प्रबन्ध चिन्तामणि' (आदर्श डी), 'पुरातन प्रबन्धसंग्रह' और 'सम्यक्त्वसप्ततिका टीका' के अनुसार सिद्धसेन ने उस अवसर पर अपनी विख्यात 'द्वात्रिंशिकाओं' का पाठ किया, जिनमें ( एक को छोड़कर ) तत्त्वज्ञान और न्यायशास्त्र के अनेक प्रश्नों की चर्चागर्भित, अन्तिम तीर्थङ्कर श्रीमहावीर की स्तुति है, और जिनके गाम्भीर्य के प्रति बहुत शताब्दियों के पश्चात् महाकवि श्री हेमचन्द्र सूरि ने भी अपनी ' अयोगव्यवच्छेदिका' के निम्नलिखित रमणीय पद्य द्वारा अपनी लघुता प्रदर्शित की है : क्व सिद्धसेनस्तुतयो महार्था अशिक्षितालापकता क्व चैषा । तथाऽपि यूथाधिपतेः पथस्थः स्खलद्गतिस्तस्य शिशुर्न शोच्यः ।। 3 ।। ( ‘सन्मतितर्क', भूमिका पृ. 91 से उद्धृत ) अर्थात् “कहाँ तो सिद्धसेन की महान् अर्थयुक्त स्तुतियाँ और कहाँ यह मेरा अशिक्षित आलाप । फिर भी यदि यूथपति (नेता) के मार्ग पर चलने वाला बच्चा ठोकर खाता हुआ दिखता है तो वह शोचनीय नहीं है ।। 3 ।।" ‘प्रभावकचरित’, ‘प्रबन्धकोश', विक्रमचरित्र' और 'उपदेशप्रासाद' के अनुसार सिद्धसेन ने 'कल्याणमन्दिरस्तोत्र' और 'द्वात्रिंशिकाएँ' दोनों को सुनाया। इस भिन्नता की चर्चा आगे की जायेगी । जगदीश की स्तुति के चमत्कारिक प्रभाव से लिंग में से एक तीर्थङ्करमूर्ति निकलती हुई दृश्यमान हुई । उपर्युक्त सभी ग्रन्थों के अनुसार वह पार्श्वनाथ की मूर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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