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________________ Jain Education International ० १४ For Private & Personal Use Only श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक वर्ष महात्मा भगवानदीन १४ डॉ० देवेन्द्र कुमार १४ श्री भागचन्द जैन १४ श्री अगरचन्द नाहटा १४ डॉ० गंगासागर राय डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री श्री शरद कुमार ‘साधक' मुनि श्री नेमिचन्द्र जी पं० मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' १४ श्री सरदारमल जैन श्री उमाशंकर त्रिपाठी 'बन्धुजी' १४ मुनि श्री नन्दीषेण विजय श्री प्रतेशचन्द जैन श्री जयभिक्खु पं० मुनि श्री रामप्रसाद जी मुनि श्री पद्मचन्द जी शास्त्री १४ उपाध्याय अमरमुनि . पं० मुनिश्री श्रीमल्ल जी महाराज १४ मैं महावीर को याद क्यों करता हूँ भगवान् महावीर के समसामयिक आचार्य मौलिक चिन्तन की आवश्यकता । भारतीय आचार्यों की दृष्टि में काव्य के हेतु स्वामी जी धनीराम जी महाराज अहिंसा से कोई विरोध नहीं शुद्धि प्रयोग की झांकी पद्मलेश्या के रस का उपमेय मद्य क्यों ? रक्षाबंधन भाई साहब जैन धर्म का दृष्टिकोण क्या आप स्वीकार करेंगे धन्य यशोदा, तुम्हे ! गुरुदेव की जीवन रेखाएँ कृपालु गुरुदेव श्रद्धेय वाचस्पतिजी: एक पुण्य स्मृति संस्मरणात्मक श्रद्धांजलि OMov or or or or ० अंक ई० सन् ८ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १९६३ १० १९६३ १० १९६३ १० १९६३ १९६३ १० १९६३ ११-१२ १९६३ ११-१२ १९६३ ११-१२ १९६३ ११-१२ १९६३ पृष्ठ २६-२९ ३१-३३ ९-१६ २०-२३ २४-२७ २८-३१ ३६-३९ ५-८ ९-११ ११-१४ १५-१८ १९-२१ २२-२३ २५-३१ १७-२८ ३०-३२ ३३-३८ ४१-४५ १४ ० ० ० ० O o o o o a www.jainelibrary.org
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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