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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org लेख तीर्थंकरों की निश्चित संख्या क्यों ? तीर्थंकर महावीर की शिक्षाओं का सामाजिक महत्त्व त्याग का मूल्य त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में प्रतिपादित सांस्कृतिक - जीवन दक्षिण हिन्दुस्तान और जैनधर्म दया- दान की मान्यता दान की आत्मकथा दान सम्बन्धी मान्यता पर विचार दार्शनिक पुरुष दार्शनिक क्षितिज का दीप्तिमान नक्षत्र दिगम्बर रहना क्या महावीर का आचार था ? द्विसन्धानमहाकाव्य में राज्य और राजा का स्वरूप दीपमाला : एक अध्यात्मिक पर्व दीपावली : एक साधना पर्व दुःख का जनक लोभ दुर्दान्त दस्यु दया का देवता बना श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री रतिलाल म० शाह डॉ० विनोदकुमार तिवारी उपाध्याय अमरमुनि डॉ० उमेशचन्द्र श्रीवास्तव पं० दलसुख मालवणिया श्री सतीशकुमार 'भैरव' श्री भग्न हृदय श्री अगरचंद नाहटा मुनिश्री रामकृष्ण उपाध्याय श्री अमरमुनि श्री रतिलाल म० शाह डॉ० रमेशचन्द्र जैन पं० श्री ज्ञानमुनि जी महाराज डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव आचार्य श्री आनन्दऋषि श्री वीरेन्द्रकुमार जैन वर्ष २८ ३६ ३१ ४३ १ ३२ ३२ २७ २५ ७ ८ ३२ ३३ अंक ७ १० ४ ४-६ ११-१२ ३ ५ ५ १ १ २ ६ ई० सन् १९७७ १९८५ १९८० ४५३ पृष्ठ २१-२६ १२-१४ ९-११ १९९२ ६९-८४ १९५० १७-१९ १९५६ ३३-३६ १९५८ ३३-३६ १९५५ ३-१० १९८१ ३४ १९८१ १९७६ १९७४ १९५५ १९५६ १९८० १९८२ ११-१३ २६-३० ३-१२ २५-२८ ३३-३५ ५-१२ ३९-४०
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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