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________________ Jain Education International ४३६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक विख्यात जैन तीर्थः प्रभास पाटन श्री भूरचन्द जैन विगत हजार वर्ष के जैन इतिहास का सिंहावलोकन-क्रमश: श्री कस्तूरमलबांठिया वर्ष २७ पृष्ठ २३-२६ ई० सन् १९७६ १९७६ १९६५ १९६५ १९६५ १६ १६ ११ १२ ३-१४ ३-१९ " श्री अगरचन्द नाहटा श्री अजितमुनि 'निर्मल' १७ १९५६ १९६६ १७-१८ २५-३१ . no a 2 mg w w x vaga For Private & Personal Use Only विद्ववर विनयसागर आद्यपक्षीय नहीं, पिप्पलकशाखा के थे - विश्व-व्यवस्था और सिद्धान्तत्रयी विदिशा से प्राप्त जैन प्रतिमाएँ और रामगुप्त की ऐतिहासिकता वीरावतार वैदिक परम्परा का प्रभाव वैदिक वाङ्मय और पुरातत्त्व में तीर्थंकर ऋषभदेव वैशाली और दीर्घप्रज्ञ महावीर वैशाली का सन्त राजकुमार शाजापुर का पुरातात्त्विक महत्त्व शिल्प कला एवं प्राकृतिक वैभव का प्रतीक - जैसलमेर का अमरसागर २५६ ३७. ६ १२ ४ श्री शिवकुमार नामदेव श्री समन्तभद्र पं० बेचरदास दोशी डॉ० राजदेव दुबे प्रो० वासुदेवशरण अग्रवाल श्री कन्हैयालाल सरावगी प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी ३८८ १९७४ १९८६ १९६१ १९८७ १९५६ १९७६ १९९० १८-२३ १-६ ९-१४ २-६ २६-३५ ३-७ १११-११४ www.jainelibrary.org श्री भूरचन्द जैन २६ ११ १९७५ २४-२७
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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