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________________ Jain Education International वर्ष श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० मोहनलाल मेहता मुनिश्री रामकृष्ण मुनिश्री जयन्तीलाल जी श्री भिखारीराम यादव प्रो० विमलदास ३३ ३ ३३ ई० सन् १९५४ १९८१ १९५२ १९८२ १९५२ ३५९ पृष्ठ । ५-९ ७-११ १७-२१ ३४-३६ ५-११ For Private & Personal Use Only लेख जैनागमों में ज्ञानवाद ज्ञान भी सम्पदा है ज्ञान की खोज में ज्ञान-प्रमाण्य और जैन दर्शन ज्ञान सापेक्ष है डॉ० गोविन्द त्रिगुणायक का “जैन दर्शन व संत-कवि" सम्बन्धी वक्तव्य तत्त्व सूत्र तत्त्वार्थराजवार्तिक में वर्णित बौद्धादिमत तर्क का क्षेत्र तीर्थंकर और दुःखवाद तीर्थंकरवाद त्याग का मनोविज्ञान तीर्थकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा का तुलनात्मक अध्ययन द्वन्द्व और द्वन्द्व निवारण (जैन दर्शन के विशेष-प्रसंग में) .18 oro wa ar x 2 m vom & ३९ श्री अगरचन्द नाहटा संन्यासी राम डॉ० उदयचन्द जैन प्रो० विमलदास जैन डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन श्री कस्तूरमल बांठिया श्री माँ अरविन्दाश्रम श्री रमेशचन्द्र गुप्त ४ ३५ ३ २४ ७ १६ १९६४ १९८८ १९८४ १९५२ १९७३ १९५६ १९६५ १९८५ २८-३६ १-८ ३७-४८ ३१-३६ २६-२८ ९-१६ २९-३३ २७-३७ __ ur डॉ० सुरेन्द्र वर्मा ४७ १०-१२ १९९६ १-१३ www.jainelibrary.org
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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