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________________ ३५७ Jain Education International लेख लेखक श्रमण : अतीत के झरोखे में वर्ष श्री ललितकिशोरलाल श्रीवास्तव २५ श्री रामजी अंक ई० सन् पृष्ठ १९७४ १९७२ २३-२८ १८-२२ * - ४ १०-१२ ४६ ६ For Private & Personal Use Only जैन दर्शन में सर्वज्ञता का स्वरूप जैन दर्शन में स्याद्वाद और उसका महत्त्व जैन दार्शनिक साहित्य में अभाव प्रमाण : एक मीमांसा जैन दार्शनिक साहित्य में ईश्वरवाद की समालोचना जैन दृष्टि से ज्ञान-निरूपण जैनधर्म का लेश्या-सिद्धान्त : एक विमर्श जैनधर्म की प्रासंगिकता जैनधर्म-दर्शन का सारतत्त्व जैनधर्म : मानवतावादी दृष्टिकोण : एक मूल्याकंन जैनधर्म में आत्मतत्त्व निरूपण जैनधर्म में 'एकान्त नियतिवाद' और 'सम्यक् नियति' का भेद जैनधर्म में कर्मयोग का स्वरूप जैनधर्म में मानव जैनधर्म में मानवतावाद श्री रमेशमुनि शास्त्री श्रीमती मंजुला भट्टाचार्या श्री रमेशमुनि शास्त्री २९ डॉ० सागरमल जैन डॉ० निजामुद्दीन ३१ डॉ० सागरमल जैन ४५ डॉ० ललितकिशोरलाल श्रीवास्तव ४० प्रो० रामदेव राम ३३ ४-६ ८ १-३ १९७९ १९९२ १९७८ १९९५ १९८० १९९४ १९८९ १९८२ २३-३५ ६७-६९ २९-३५ १५०-१६५ १९-२५ १-१३ ३४-४५ १-९ ११ पं० फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री १३ श्री कन्हैयालाल सरावगी ३० डॉ० रज्जन कुमार/डॉ० सुनीता कुमारी ४१ श्री कस्तूरमल बांठिया १७ १९६२ १९७९ १९९० १९६६ ।। ६-८ १५-२० १०५-११२ www.jainelibrary.org २५-३२
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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