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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३५० लेख अनेकान्तवाद की व्यावहारिक जीवन में उपयोगिता अपने को जानिये अभव्यजीव नवग्रैवेयक तक कैसे जाता है ? अरविन्द का अनेकान्त दर्शन अर्हं परमात्मने नमः अशोक के अभिलेखों में अनेकांतवादी चिन्तन : एक समीक्षा असंयत जीव का जीना चाहना राग आकाश आगम साहित्य में कर्मवाद आचार्य दिवाकर का प्रमाण : एक अनुशीलन आचार्य हरिभद्रसूरि का दार्शनिक दृष्टिकोण आचारांग का दार्शनिक पक्ष आचारांग की दार्शनिक मान्यतायें आचारांग में उल्लेखित 'परमत' आचारांग में सोऽहम् की अवधारणा का अर्थ आत्म-अनात्म द्वन्द्वात्मिकी श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सनत् कुमार जैन श्री देवेन्द्र कुमार श्री कस्तूरमल बांठिया श्री श्रीप्रकाश दुबे प्रो० कल्याणमल लोढ़ा डा० अरुणप्रताप सिंह प्रो० दलसुख मालवणिया डॉ० मोहनलाल मेहता "" डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव कु० सुशीला जैन स्व० डॉ० परमेष्ठी दास जैन डा० इन्द्र पं० बेचरदास दोशी मुनि योगेश कुमार संन्यासी राम वर्ष q m a m x ३२ १९ १३ ४२ ४४ ४ २० ♡ 2 m v २२ १७ २३ ३८ ४ १७ ३५ ३८ अंक ७ ८ १२ ४-६ १०-१२ ३ w ७ १-२ १ १२ १० ७ ७ ११ ई० सन् १९८१ १९५४ १९६८ १९६२ १९९१ १९९३ १९५३ १९६९ १९७१ १९६५ १९७१ १९८७ १९५३ १९६६ १९८४ १९८७ पृष्ठ १८-१९ ३१-३३ ७-११ ६-८ १-१० ८-१३ ३-६ ५-७ ४-१२ ३-६ १९-२३ १-११ १-६ २१-२४ १-१० ९-१९
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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