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________________ । १७६ श्रमण : अतीत के झरोखे में Jain Education International वर्ष अंक ई० सन् पृष्ठ ४ १९५३ ८-१० For Private & Personal Use Only लेख अरविंद क्रोध आदि वृत्तियों पर विजय कैसे? अरुण प्रताप सिंह अशोक के अभिलेखों में अनेकांतवादी चिन्तन : एक समीक्षा इषुकारीय अध्ययन (उत्तराध्ययन) एवं शांतिपर्व- (महाभारत) का पिता-पुत्र संवाद जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ की स्थापना के जैन परम्परा के विकास में स्त्रियों का योगदान ए जैन भिक्षुणी-संघ और उसमें नारियों के प्रवेश के कारण भगवान् महावीर की निर्वाण तिथि : एक पुनर्विचार के भिक्षुणी संघ की उत्पत्ति एवं विकास है हरिभद्र की श्रावक प्रज्ञप्ति में वर्णित अहिंसा : आधुनिक संदर्भ में हिन्दू एवं जैन परम्परा में समाधिमरण : एक समीक्षा अर्चना पाण्डेय जैन दर्शन के संदर्भ में भाषा की उत्पत्ति ६ जैन दर्शन में कथन की सत्यता जैन भाषा दर्शन की समस्याएँ शब्द का वाच्यार्थ जाति या व्यक्ति १०-१२ १९९३ १-३ १९९१ ९ १९८४ १०-१२ १९९३ ४ १९८२ १०-१२ १९९५ ९ १९८० १०-१२ १९९० १०-१२ १९९३ ८-१३ ८७-९२ १-१६ १-७ १२-१६ १-४ १७-२० ५७-७० १४-१८ ५ ५ १-३ ९ www.jainelibrary.org १९८६ १९८५ १९९१ १९८५ ११-१८ ६-९ ९३-९६ ९-१३
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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