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________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में १५१ Jain Education International ४३ अंक ई० सन् १०-१२ १९९२ १०-१२ १९९२ १-३ १९९३ १-३ १९९३ पृष्ठ ४९-६६ ६७-६९ १-७ ८-२७ ९ ३ ४४ ४४ लेख लेखक पूर्णिमागच्छ-प्रधान शाखा अपरनाम ढंढेरिया शाखा का संक्षिप्त इतिहास डॉ० शिवप्रसाद 3 जैन दार्शनिक साहित्य में ईश्वरवाद की समालोचना श्रीमती मंजुला भट्टाचार्या । 'आत्मोपलब्धि की कला-ध्यान महोपाध्याय मुनि चन्द्रप्रभसागर आचार्य हरिभद्र और उनका योग डॉ० कमल जैन डॉ० ईश्वरदयाल जैन कृत "जैन निर्वाण परम्परा और " परिवृत" लेख में 'आत्मा की माप-जोख' शीर्षक के अन्तर्गत उठाये गये प्रश्नों के उत्तर श्री पुखराज भण्डरी पल्लवनरेश महेन्द्रवर्मन “प्रथम" कृत मत्तविलास प्रहसन में वर्णित धर्म और समाज दिनेशचन्द्र चौबीसा सार्धपूर्णिमागच्छ का इतिहास डॉ० शिवप्रसाद आचार्य हरिभद्र और उनका साहित्य डॉ० कमल जैन षड्जीवनिकाय में त्रस एवं स्थावर के वर्गीकरण की समस्या डॉ० सागरमल जैन ४४ १-३ १९९३ २८-३४ For Private & Personal Use Only ४४ १-३ १९९३ १९९३ १९९३ १९९३ ३५-४१ ४२-५९ १-१२ १३-२१ ४४ ४-६ ४-६ डॉ० शिवप्रसाद डॉ० केशवप्रसाद गुप्त ४४ ४४ ४-६ ४-६ १९९३ १९९३ २२-३५ ३६-५८ ४४ ३ www.jainelibrary.org पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा का इतिहास वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य महायान सम्प्रदाय की समन्वयात्मक दृष्टि : भागवद्गीता और जैनधर्म के परिप्रेक्ष्य में डॉ० सागरमल जैन ४४ ७-९ १९९३ १-१०
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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