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________________ १४९ Jain Education International श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक डॉ० सागरमल जैन अंक ७-१२ ई० सन् १९९१ पृष्ठ । १७२४ श्री भंवरलाल नाहटा ४२ ७-१२ १९९१ २५-३४ ७-१२ ४२ ७-१२ ७-१२ ७-१२ For Private & Personal Use Only लेख उच्चैर्नागर शाखा के उत्पत्ति स्थान एवं उमास्वाति के जन्मस्थल की पहचान सूडा-सहेली की प्रेमकथा जैन सम्मत आत्मस्वरूप का अन्य भारतीय दर्शनों से तुलनात्मक विवेचन अपभ्रंश के जैन पुराण और पुराणकार कोटिशिला तीर्थ का भौगोलिक अभिज्ञान उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास मूल्य और मूल्य बोध की सापेक्षता का सिद्धांत है गुणस्थान सिद्धांत का उद्भव एवं विकास चन्द्रवेध्यक(प्रकीर्णक) एक आलोचनात्मक परिचय श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में परमेष्ठी पद ऋषिभाषित का सामाजिक दर्शन | पर्यावरण एवं अहिंसा स्याद्वाद की समन्वयात्मक दृष्टि युगपुरुष आचार्य सम्राट आनन्द ऋषि जी म० गुणस्थान सिद्धांत का उद्भव एवं विकास ४२ ४३ १-३ ४३ डॉ० (श्रीमती) कमला पंत रीता बिश्नोई डॉ० कस्तूरचन्द जैन डॉ० शिव प्रसाद डॉ० सागरमल जैन डॉ० सागरमल जैन श्री सुरेश सिसोदिया साध्वी (डॉ०) सुरेखा श्री साध्वी (डॉ०) प्रमोद कुमारी डॉ० डी०आर० भण्डारी डॉ० (कु०) रत्ना श्रीवास्तव उपाचार्य देवेन्द्र मुनि डॉ० सागरमल जैन १-३ १-३ १९९१ १९९१ १९९१ १९९१ १९९२ १९९२ १९९२ १९९२ १९९२ १९९२ १९९२ १९९२ १९९२ ३५-४३ ४५-५६ ५७-६० ६१-१८२ १-२२ २३-४३ ४५-५३ ५५-६७ ६९-७९ ८१-९० ९१-१०२ १०३-१०५ १-२६ a प a ३ ४३ १-३ ४३ www.jainelibrary.org ४३ ४-६
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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