________________
[१४]
मुहपत्तिपन्धन अर्थः-श्रावक, गुरुना शरीरने पोताना मुखर्नु थूकके श्वास न लागे ते माटे वस्त्रथी मुख ढांकी, मौन राखी, शरीरना थाकने हरतो अने यत्नथी पोताना पगना स्पर्शने तजतो गुरुनी सेवा करे.
साधुने पण वसतीनुं प्रमार्जन करती वखते शास्त्रकारे मुहमति बांधवानुं कर्तुं छे, तो पछी धर्मदेशना मोढे मुहपति बांध्या विना केम अपाय ? श्रुतज्ञाननी आशातना दूर करवाने अने जीवदयाने माटेज पूर्वाचार्यों धर्मदेशना समये मोढे मुहमति बांधता हता अने बांधवी जोई.
धर्मशास्त्र वाचती वखते मोढे मुहपति के कपडु बांधवानो रिवाज जैन अने जैनेतर धर्ममा हतो अम पंडित श्री सुखलालजी पण पोतानी सन्मतितर्कनी गुजराती प्रस्तावनामा लखे छे
जैन साधुओमां केटलाकनो अवो रिवाज छे के मात्र सभामा व्याख्यान करती वखते मोढे मुहपति बांधवी.
मंत्रोच्चार करती वखते पारसी अध्वर्युमां मोढे कपड़े बांधवानी प्रथान, सांख्य परीवाजकोमा मोढा आगळ लाकडानी पट्टी रास्त्रवानी प्रथा, अने स्वामिनारायण संप्रदायनी शरुआतमां वांचती वखते मुखवस्त्र राखवानी प्रथाचें मूळ एकज लागे छे के विद्यार्थी के श्रोता उपर व्याख्याता के वक्ता, थूक न पडे. तेषां च महाभारते-बीटेतिख्याता दारवी मुखवत्रिका मुखनिश्वास निरोधिका भूतानां दया निमित्तं भवति यदाहुस्ते-घ्राणादितोऽनुयातेन श्वासेनैकेन जन्तवः ॥ हन्यते शतशो ब्रह्मन्नणुमात्राक्षरवादिनाम् ॥१॥
भावार्थ-वेओना महाभारतने विषे बीटा ए नामथी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org