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मुहपत्तिवन्धन मूलथी नासिकाना अग्रभाग उपर मुहपत्ति राखी, हाथमा योगमुद्रा धारण करी, विकसित नेत्रे, मधुर स्वरे, सर्व लोकने वोध करवा माटे धर्मदेशना आपे. आ पाठम! ग्रंथकारे धर्मदेशना आपवानी विधिन विधान स्पष्ट रीते दर्शावेल छे, एमां अंशमात्र संशय करवानी जरुर नथी. विचाररत्नाकरना एक श्लोकमां पण मुहपतिबंधननो स्पष्ट उल्लेख छे.
कण्ठे सारसरस्वती हृदि कृपानीतिक्षमाशुद्धयो,
वक्त्राब्जे मुखवखिका सुभगता काये करे पुस्तिका। भूपालप्रगतिः पदे दिशि दिशि श्लाघाऽभितः संपदा,
इत्थं भूरिवधूतोऽपि विदितो यो ब्रह्मचारीश्वरः॥१॥
अर्थः-जेनां कण्ठमां सरस्वती छे, हृदयमां दया, नीति, क्षमा अने शुद्धि छे, शरीरमां सुभगता छे, मुख उपर मुखवत्रिका धारण करी छे, हाथमां पुस्तक छे, पगमां राजओ पणति-नमस्कार करे छ, दिशे दिशामा प्रसंशा फेलायेली छे, चारे बाजु संपदा फरी वळो छे-एवी रीते घणी स्त्रीओथी परिवरेल उतां जे ब्रह्मचारी तरीके प्रसिद्ध छे. आ श्लोकमां कविए आचार्यनी व्याख्यान विषयिक स्थिति वर्णन आप्यु छे.
हरिबलमच्छिना रासमां पण धर्मदेशना समये मोढे मुहपत्ति बांधवानी वात आवे छे.
बीजे दिने रवि उगियो, प्रगटयो राग विभास । ककुभाए बाह पसारीया, कैरव कीध प्रकाश ॥१॥
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