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________________ गीतार्थपरम्परा योगमुद्रामां मुखथी हाथ छेटे ज रहे छे अने प्रवचनमुद्रामां तो एक हाथमां पानां अने बीजा हाथमा प्रवचनमुद्रा ज होय छे. एटले मुहपत्तिनो उपयोग रही शकतोज नथी, तेथी व्याख्यान समये मोढे मुहपत्ति बांधवांनी जरुर रहे छे. न बांधे तो संपातिम जीवो तथा वायुकायनी विराधना थाय, श्रोताओ उपर थूक उडे तेमज श्रुतज्ञाननी आशातना थाय छ तेथी पूर्वाचार्यनी परंपराने अनुसारे व्याख्यान समये मोढे मुहपत्ति बांधवामां आवे छे. व्याख्यान सिवाय बीजा समये योगमुद्राए के प्रवचनमुद्राए शास्त्र वांचवान नथी. तेथी मुहपत्ति हाथमा राखीने वांचवामां आवे छे अने व्याख्यान सिवायना वखतमा भणतां के वांचतां साधुने शास्त्रकारे तीर्थकर स्थानीय कहेला नथी, तेथी ते वखते मुहपत्ति बांधवान कई प्रयोजन नथी, एटले ते समये मुहपत्ति हाथमां रखाय छे. श्री शीलांकाचार्यकृत "विधिप्रपा" ग्रन्थमा देशनाधिकारमा मोढे मुहपत्ति बांधवानो स्पष्ट उल्लेख मळे छे. आ रह्यो ते पाठ. इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं धम्मोवएस दिएह, तओ गुरु आसणोवविठ्ठो मुहपावरणधरो दाहिणपासठियरयहरणो पउमासणपलहट्ठियासणिओ वा भयवं कण्णमूलकयनासग्गनिवेसियहत्थग्गो जोगमुद्दाए पुलइयनयणो सुमहुरसरेण सव्वजाणवयबोहगामिणीए भयवत्तीए देसणं कुणइ । भावार्थ :- हे भगवन् ! ईच्छापूर्वक आप अमने धर्मोपदेश आपो. त्यारपछी गुरु शुभ वस्त्र धारण करी, आसन उपर बेसी, रजोहरण जमणे पडखे राखी, पद्मासन वाली, कानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001774
Book TitleParvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherChinubhai Trikamlal Saraf
Publication Year1962
Total Pages70
LanguageGujarati, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Gujarati, Tithi, & Religion
File Size3 MB
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