________________
मुहपत्तिबन्धन
संपाइमरयरेणु पमज्जणहा वयंति मुहपोति । नासं मुहं च बन्धइ, तीए वसहिं पमज्जंतो ॥२॥ ___ भावार्थ :-हाथमा राखबानी मुहपत्तिनुं प्रमाण अक वेंत अने चार अंगुलनुं छे, मोढे बांधवानी बीजी मुहपत्तिनुं प्रमाण मुख प्रमाणे होय छे. संपातिम एटले उडता जीवो अने रज मुखमां न पडे ते माटे वसतिर्नु प्रमार्जन करतां माधु मोढे मुहपत्ति बांधे छे.
उपदेशप्रासाद स्थंभमां श्री विजयलक्ष्मीसूरि महाराज मोढानां यूं कथी उच्छिष्ट थयेल मुहपत्तिने पुस्तक के स्थापनागुरूथी जुदी राखबार्नु जणावे छे. ते पाठ नीचे प्रमाणे छे
मुखनिष्ठ्युतादिभिरूच्छिष्टा वत्रिका पुस्तकैः सह स्थापनागुरूणा च साकं न रक्षणीया, किन्तु भिन्नैव धार्या ॥
धर्मदेशना समये मोढे मुहपत्ति बांधवाना मुख्य बे कारणो छे. पहेलं कारण ए छे के-ऊडता त्रसजीवो अने वायुकायर्नु रक्षण करवाने अने बीजु कारण पुस्तक उपर थूक लागवाथी श्रुतज्ञाननी आशातना थाय ते दूर करवाने छे. व्याख्यान वखते मुहपत्ति हाथमा राखवाथी हाथ मुख आगळ स्थिर रहेतो नथी. ऊँचोनीचो थई जाय तेथी वायुकायनी विराधना थाय अने थूक लागवाथी श्रुतज्ञाननी आशातना थाय, मुहपत्तिनो उपयोग गमे तेटलो राखवामां आवे तो पण बोलती वखते थूक लाग्या वगर रहेतु नथी, तेथी पूर्वाचार्यों गणधर महाराजनी परंपराने अनुसारे व्याख्यान समये मुहपत्ति बांधतां हतां. आ प्रथा सर्व गच्छमां हती.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org