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________________ पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार पर्व तिथिनी क्षय के वृद्धिमा पूर्वनी अपर्व तिथिनी क्षय के वृद्धि करे छे पण कल्याणकनी तिथिओमां पूर्वनी तिथिओंनी क्षयके घृद्धि करता नथी कारणके कल्याकनी तिथिओ अनियत छे अने एर्नु तप न करे तो प्रायश्चित्त पण लख्यु नथी आज हकीक्त कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य स्वरचित श्री वीतराग स्तोत्रना ओगणीशमा प्रकाशमां स्पष्टरुपे जणावी छे. आ हकीक्त परथी आ वस्तुनी गहनता अने महत्ता समजाशे. तेओश्री कहे छे केवीतराग ! सपर्यायास्तवाज्ञापालन वरम् । आज्ञाऽऽराद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय च ॥ अर्थात्-हे वीतराग ! आपनी सेवा करवा करतां आज्ञानुं पालन करवं ते भावस्तवरुप होवाथी उत्कृष्ट फळ आपनार छे; केमके आज्ञानुं आराधन माक्षने माटे थाय छे अने आपनी आज्ञानी विराधना संसार-भ्रमणने माटे थाय छे. अंतमा पू. उपाध्यायश्री यशोविजयजी महाराजुना टंकशाळी वचन उद्धरीने विरमोश कलहकारी कदाग्रहभर्या, थापतां आपणा बोल रे; . जिनवचन अन्यथा दाखवे, आज तो वाजते ढोल रे. स्वामी सीमंधरा बिनति उपसंहार आ पर्वतिथिप्रश्नोत्तरविचारनी लघु पुस्तिकामां आपेल सूत्र अने ग्रंथना प्रमाणोथी वांचको समजी शक्या हशे के आराध्य तिथिओनी क्षय के वृद्धि मनाती नथी तेथी जन्मभूमि पंचांगमा पर्वतिथिनी क्षय के वृद्धि होय त्यारे अपर्वतिथिनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001774
Book TitleParvatithi Kshay Vruddhi Prashnottar Vichar tatha Muhpatti Bandhan Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherChinubhai Trikamlal Saraf
Publication Year1962
Total Pages70
LanguageGujarati, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Gujarati, Tithi, & Religion
File Size3 MB
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