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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार प्रश्न २५-लौकिक पंचांगमां बे पूर्णिमा होय त्यारे चतुर्दशीए ज पाक्षिक प्रतिक्रमण करवू, आ मान्यता खरतरगच्छनी छे के तपागच्छनी ?
उत्तर-~लौकिक टिप्पणमां बे पूर्णिमा होय त्यारे चतुर्दशीए ज पाक्षिक प्रतिक्रमण करवं, आ मान्यता खरतर गच्छनी छे; तपागच्छनी नथी. खरतरगच्छ्वाळा टिप्पणामां पर्वतिथिनी वृद्धि होय त्यारे पहेली तिथि ग्रहण करे छे, बीजी तिथि मानता नथी चतुर्दशीएज पाक्षिक प्रतिक्रमण करे छे एटले तेमनी चतुर्दशी अने पूर्णिमानी अनंतर आराधना कायम रहे छे. तपागच्छवाळा श्री उमास्वातिना प्रघोषानुसार वृद्धिमां बीजी तिथि ग्रहण करे छे तेथी चतुर्दशी अने पूर्णिमानी अनंतर आराधना कायम राखवा माटेज पंचांगनी प्रथम पूर्णिमाए औदयिक चतुर्दशी स्थापीने पाक्षिक कृत्य करे छे तपागच्छनी आ मान्यतानु उपाध्याय श्री धर्मसागरजीए पोताना उत्सूत्रो. घट्टन कुलकमां सारी रीते समर्थन कर्यु छे. खरतरगच्छीय आचार्यश्री जिनचंद्रसूरिजीना प्रशिष्य वाचनाचार्यश्री गुणविनयगणिए पण वि. सं. १६६५मां बनावेल उत्सूत्रखंडन ग्रंथमां पण आ बाबतनो निर्देश कर्यो छे, जुओ ते पाठ-अन्यच्च वृद्धौ (पूर्वतिथौ) पाक्षिकं क्रियते इदं किं? आगळ च्छो लीटोमां तेओश्री स्पष्ट लखे छे के
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