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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार उमास्वाति महाराजना प्रघोषनो पाठ झये पूर्वा तिथि: कार्या वृद्धौ कार्या तथोत्तरा आपीने जणावे छे के-लौकिक पंचांगमा पर्वतिथिनो क्षय आवे तो तेनी पूर्वतिथिमां क्षय पामेल पर्वतिथि स्थापीने तेनी आराधना करवी. जेमके पंचांगमां अष्टमीनो आय आवे तो औंदायिक सातमे आठम स्थापीने अष्टमीनी आराधना करवी अर्थात् सातमनो क्षय करो ते आराध्य तिथिने आठम कहेवी अने मानवी.
पंचांगमा पर्वतिथिनी वृद्धि आवे तो उत्तरा एटले बीजी तिथिने पर्वतिथि कहेवी अने आराधवी, जुओ कल्पसूत्र समाचारी टीकानो पाठ..
यथा चतुर्दशीटद्धौ प्रथमा चतुर्दशीमवगणय्य द्वितीयायां चतुर्दश्यां पाक्षिककृत्यं क्रियते ॥
कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्रांक २०६. अर्थ-पंचांगमा बे चतुर्दशी आवे तो पहेली चौदशनी अवगणना करीनेज बीजी चतुर्दशीए पाक्षिक कृत्य कराय छे. आ पाठमा टीकाकारे प्रथम चतुर्दशीने माटे अवगणय्य संबन्धकभूतकृदंत मूकेल छे ते खास अर्थसूचक छे. 'अवगणय्य' शब्दनो अर्थ शब्दकोषमा 'अपमान-अवज्ञा-तिरस्कार-पराभव' अर्थ करेल छे एटले प्रथम चतुर्दशीने चौदश न कहेवी, पण अपर्वतिथि तरीके बीजी तेरस कहेवी अने मानवी एम अर्थापत्तिन्यायथी सिद्ध थाय छे. जो टीप्पणानी पहेली चोदशने लोकोत्तर दृष्टिए चौदश कहेवाती होय तो टीकाकार महाराजा उपाध्याय श्री विनयविजयजी गणिवर्य प्रथम चतुर्दशीने माटे परित्यज्य के
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