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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * दुःख देने वाली होती है। २. अपारदर्शी लालड़ी हृदय रोग पैदा करती है। ३. रेखाओं से मकड़ी के जाल की तरह के निशान लालड़ी भी
स्वास्थ्य को खराब करने वाली है। ४. एक रेखायुक्त या छोटी-छोटी रेखाओं से युक्त लालड़ी से शस्त्राघात
का डर होता है। ५. गढ्ढेदार या टूटी हुई लालड़ी पशुधन को खराब करती है। ६. दो रंगों से युक्त या छोटे काले रंगों के निशान से युक्त या शहद के
समान रंग के धब्बे से युक्त, रक्त के समान लाल रंग की धब्बे से युक्त अथवा श्वेत रंग के छोटे-छोटे निशान से युक्त लालड़ी धन,
जन, स्वास्थ्य, यश, मान आदि के लिये हानिप्रद है। लालड़ी के उपरत्न
लालड़ी के भी तीन उपरत्न होते हैं जिन्हें लालड़ी के स्थान पर ग्रहण किया जाता है।
१.संग आतशी : यह बादामी रंग का तथा आतशी रंग का पत्थर है।
इसके ऊपर काले, पीले या गुलाबी रंग के निशान होते हैं। २. संग सिन्दूरिका : यह सिन्दूरी तथा गुलाबी रंग का होता है। ३.संग टोपाज : यह गेरुआ रंग का तथा स्निग्ध पत्थर है।
माणिक्य के अन्य उपरत्न लालड़ी के पश्चात माणिक्य के तीन और उपरत्न होते हैं
१. संग माणिक-यह गुलाबी, लाल, पीले तथा काले रंग का, स्वच्छ, स्निग्ध व हल्की आभायुक्त होता है। यह हिमालय, विन्ध्याचल के शिखरों में व वर्मा, लंका, स्याम आदि में भी पाया जाता है।
२. संग तामड़ा-यह गहरे लाल रंग का होता है। यह भी हिमालय, विन्ध्याचल, अरावली तथा ढुंढार आदि अन्य स्थानों में पाया जाता है।
३. माणिक सिंगली-यह अभ्रक के रंग का तथा चिकना होता है। यह स्याम तथा चीन के देशों में पाया जाता है।
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