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________________ ८३ नवरत्न और उनका प्रयोग १. माणिक्य रत्न (Ruby) माणिक्य रत्न को सोनरत्न और वसुरत्न भी कहते हैं। इसका स्वामी सूर्य है। संस्कृत में इसे माणिक्य के अतिरिक्त पद्मराग, शोण तथा लोहित रत्न भी कहते हैं। हिन्दी में माणिक, मणि, फारसी में याकूत, अंग्रेजी में रूबी और उर्दू में चुन्नी कहकर पुकारते हैं । माणिक मणि की खानें सर्वप्रथम उत्पन्न हुई। इनकी खानें गंगा नदी, विन्ध्याचल, हिमालय, स्याम, बर्मा, श्रीलंका और पश्चिम में काबुल में तथा वनों में भी पायी जाती हैं। इसका रंग रक्त के समान, सुर्ख लाल कमल के समान होता है। आजकल छाया भेद के आधार पर सुर्ख रंग इसकी पहचान बन गयी है। लाल कमल के अतिरिक्त माणिक्य का रंग गुलाबी कमल, रोली, सिन्दूर, लाख, अनार के बीज, टेसू, सिंगरीफ, केले का पुष्प, गुंजा, कल्पवृक्ष के पुष्पों के रंगों के समान भी होता है। असली माणिक्य की पहचान--इस माणिक्य को गाय के दूध में छोड़ देने से दूध का रंग गुलाबी हो जाता है और कमल की कली पर रख देने से वह बिल्कुल खिल जाती है। यही असली माणिक्य होने के लक्षण हैं। सूर्य की रोशनी में माणिक्य को शुभ्र चाँदी के पात्र में तथा मोती में रखने से मणि इन्हें लाल कर देगी। माणिक्य को हाथ पर रखने से सुर्सी छा जाये तथा उसे काँच के किसी बर्तन में रखने से उसमें से चारों तरफ लाल किरणें निकलें तो वह भी शुद्ध माणिक्य है। माणिक्य रत्न के गुण, लाभ व दोष-इसके गुण पाँच प्रकार के हैं-अच्छे रंग, और अच्छे आकार का पानीदार, साफ, चिकना, चमकीला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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