________________
५४
* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * बनी हो कि पन्ना का निचला भाग अँगुली त्वचा से स्पर्श करता रहे।
जिस बुधवार को अंगूठी बनवाई जाये उसी बुधवार को दिन में ११ बजे सर्वतोभद्रचक्र बनाकर उसके ऊपर चाँदी से बना कलश स्थापित करें। कलश की विधिवत् पूजा-अर्चना करने के बाद कलश के भीतर अंगूठी रख दें और निम्नलिखित मन्त्र द्वारा अंगूठी को अभिमन्त्रित करें"हां कौं द्रं ग्रह नाथाय बुधाय स्वाहा।"
अथवा "ॐ हवां हवीं बुं ग्रहनाथ बुधाय नमः।" ६ तोले वजन के चाँदी के पत्र पर खुदे बुध यन्त्र का विधिवत् पूजन करें। फिर "ॐ उबुधस्वाग्ने प्रति जागृहिं त्वमिष्टा पूर्ते स● ७ सृजेथा मयञ्च । अस्मिन्तसधस्ये अध्युत्तर स्मिन्विश्वेदेवा यजमानश्च सीदेतः"। श्री बुधाय नमः । मन्त्र द्वारा ४,००० आहुतियाँ देकर हवन करें। इसके बाद अंगूठी को कलश से निकाल कर यन्त्र पर रखकर कलश के जल द्वारा अभिषेक करते हुये अँगूठी में बुध की प्राण-प्रतिष्ठा करें। इसके उपरान्त फिर बुध मन्त्र से अँगूठी को अभिमन्त्रित करते हुये दायें हाथ की कनिष्ठका या अनामिका अँगुली में धारण करना चाहिये। अन्त में बुध यन्त्र, पन्ना का एक नग, स्वर्ण कस्तूरी, कांस्य, चावल तथा नीला अथवा हरा रंग का वस्त्र यथाशक्ति दक्षिणा के साथ कर्मकाण्ड कराने वाले ब्राह्मण को दान कर देना चाहिये।
उपरोक्त विधि अनुसार धारण करने से पन्ना जड़ित अंगूठी बुध द्वारा उत्पन्न कष्टों को नष्ट कर विद्या, बुद्धि एवं धन की वृद्धि कर जीवन को सुखमय बनाती है।
गुरू रत्न 'पुखराज' की धारण विधि
अँगूठी बनवाने के लिये ४ रत्ती से अधिक वजन का पुखराज ५, ७, ८, १०, १२, १४, रत्ती का शुभ होता है तथा ६, ११, १५ रत्ती वजन का पुखराज हानिकारक होता है। पुखराज को सोने की अंगूठी में जड़वाना चाहिये और सोने की अंगूठी ४, ८, १०, १२, १४ रत्ती की होनी चाहिये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org