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________________ १७० * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * रसायनों के सम्पर्क में आ जाने से भी होता है। शरीर की भीतरी कार्य प्रणाली में गड़बड़ी होने पर भी यह रोग हो सकता है। रक्त विकार भी इस रोग का प्रमुख कारण है। ज्योतिषीय विचार-त्वचा के सभी विकार शुक्र से सम्बद्ध होते हैं। जन्म के समय जातक यदि शुक्र, मेष, कन्या या मकर राशि में हो तो त्वचा पर चिकत्ते पड़ने की सम्भावना होती है। नीच राशि का मंगल और बृहस्पति भी खुजली तथा एलर्जी को जन्म देता है। राहु-केतु में सफेद दाग होने की सम्भावना होती है। लग्नेश का रत्न अवश्य धारण करें। मोती और सफेद ओपल भी धारण करना चाहिये। लहसुनिया पहनने से भी त्वचा व चर्म रोगों से बचाव होता है। अतिसार यह रोग वर्षा ऋतु में अधिकता से पाया जाता है। इस रोग में रोगी को निरन्तर पानी के समान पतले दस्त आते हैं। जिससे शरीर में पानी की कमी होने की आशंका रहती है। रोगी जो कुछ भी आहार लेता है, वह पचा नहीं पाता और तुरन्त शौच हो जाती है। यह रोग जीवाणुओं के संक्रमण से होता है तथा इसके प्रमुख कारण आँतों में सूजन, खाने-पीने में असावधानी, विषाक्त भोजन इत्यादि है। पेट में ऐठन का अनुभव होना भी अतिसार का संकेत है। शारीरिक शक्ति भी अत्यन्त दुर्बल हो जाती है। इस रोग में रोगी को परहेज के साथ-साथ तरल व सुपाचक भोजन का भरपूर सेवन करना चाहिये। ज्योतिषीय विचार-गोचर काल में लग्न स्थान से भ्रमण करने वाले ग्रह इस रोग के होने के कारक हैं। जब मंगल कर्कऔर तुला राशि के गोचर में तथा सूर्य वृष और वृश्चिक राशि के गोचर में परिभ्रमण करता है तब अतिसार रोग के होने की अधिक सम्भावना होती है। चौथे और छठे भाव यदि पाप ग्रह युक्त हों तो भी अतिसार होने की सम्भावना होती है। लग्नेश तथा अष्टमेश का संयुक्त रत्न अँगूठी में धारण करें। पन्ना, मोती तथा मूनस्टोन धारण करना भी लाभदायक माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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