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________________ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * मणि को धारण करता है उसे ऐच्छिक फल प्राप्त होते हैं। यह मणि नीले रंग और श्याम वर्ण से युक्त होती है। बड़े से बड़े भाग्यवान व्यक्ति को भी इस मणि की प्राप्ति बहुत दुर्लभ है। चिन्तामणि-चिन्तामणि मन की चिन्ताओं से मुक्ति दिलाने वाली, ब्राह्मण वर्ण और श्वेत रंग की है। इसके देवता ब्रह्मदेव हैं । चन्द्रमा के समान शोभायमान इस रत्न को पाकर ब्रह्मदेव ने इसे ग्रहण कर लिया। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह कथा है कि उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत पर मणिपुर देश है, वहीं पर यह मणि उत्पन्न हुई। वहाँ एक राजा निष्कपट भाव से राज करते थे। उनके पास चिन्तामणि देख कर एक असुर ईर्ष्या भाव से भर गया और उस राजा से युद्ध में विजयी होकर उस मणि को अपने वक्षःस्थल पर धारण किया। इस मणि के मिल जाने से वह अहंकारी हो गया। तब ब्रह्माजी ने उसका अहंकार दूर करने के लिये बहुत स्नेह से उससे वह मणि ले ली और वह अपने पास रख ली। उसे धारण करते ही ब्रह्माजी समस्त प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो गये और सभी इच्छित कार्य पूर्ण हुए । मनुष्यों को इस मणि के दर्शन भी दुर्लभ होते हैं। कौस्तुभमणि-कौस्तुभमणि का रंग लाल कमल के समान होता है। यह क्षत्रिय वर्ण की है और इसके स्वामी भगवान् विष्णुजी हैं। यह करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान हैं। देवताओं तथा असुरों द्वारा समुद्र-मन्थन के समय निकले चौदह रत्नों में लक्ष्मीजी के साथ ही कौस्तुभमणि भी निकली। यह मणि रूप, गुण तथा तेज से शोभायमान थी। लक्ष्मी ने तीनों देवों में भगवान् विष्णु का सात्विक पाकर वरण किया तो लक्ष्मीजी के पिता समुद्र ने ब्राह्मण का वेश बनाकर भगवान् को विधिपूर्वक कन्यादान किया और थाल को रत्नों से भरकर उस पर कौस्तुभमणि रखकर दहेज में दिया। चूँकि इस मणि में अत्यधिक तेज था, अत: लाल रंग तथा क्षत्रिय वर्ण की इस कौस्तुभमणि से भगवान् विष्णु का तेज और भी बढ़ गया। मनुष्यों को इसका भी दर्शन दुर्लभ है। स्वर्गलोक की इन चारों मणियों की कथा सुनाने के पश्चात महर्षि पराशर ने कहा-हे राजन, इन चारों मणियों से सम्बन्धित समस्त बातें बताने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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