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________________ १५० * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * और बुरा हो गया हो तो भी नग माफिक नहीं हुआ है। कुल मिलाकर हमारी दैनिक दिनचर्या, मानसिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि क्रियाओं को नुकसान न पहुँचे इसलिए नग ट्राई किया जाता है। ४०. यदि आप रत्नों में विश्वास रखते हैं तो पहनने के बाद भी विश्वास रखें। यदि आप किन्तु-परन्तु या अविश्वास में रहे तो आप नग नहीं पहन पाओगे। ४१. नग पारदर्शी व अपारदर्शी होते हैं । अपारदर्शी (पोटे) को देखते समय विशेषत: ऊपरी सिरा (टॉप) देखना चाहिए। ४२. ये बात मन से निकाल दें कि नग सवाया में होते हैं। कोई भी नग विशेष वजन के अनुसार नहीं बनता। हिन्दू धर्म में पवित्र वस्तुओं के मापतौल में सवाया शब्द लगाया जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि मान लो आपको एक नग ६ रत्ती का चाहिए तो इसको सवा ६ रत्ती का बोलेंगे अर्थात् नग ६ रत्ती से कम का न हो, नग का 'साढ़े या पौने' में होना कोई दोष नहीं है बल्कि ये शब्द केवल आपको भ्रमित करने के लिए अपनाए जाते हैं। ४३. कुछ विद्वानों के अनुसार नग का पहने-पहने रंग का उड़ना या फीका पड़ जाना जातक के लिए लाभप्रद है अर्थात् विद्वानों का यह मानना है कि आपके ऊपर आने वाले भारी संकट को उसने सहन किया है या करता रहा है। ४४. जौहरी को चाहिए कि दूसरी जगह से खरीदे गए नगों की क्वालिटी व मूल्य नहीं बताने चाहिए केवल जितना समझ में आता है उसके अनुसार केवल असली-नकली की जानकारी देनी चाहिए। सरकारी प्रयोगशाला में इसका अक्षरशः पालन किया जाता है। ४५. कुछ रत्न विक्रेता ग्राहक को आकर्षित करने के लिए रत्न कम मूल्य या लागत मूल्य पर भी देने से नहीं चूकते, यदि सोने या चाँदी में अंगूठी उन्हीं से बनती हो। ४६. सर्वश्रेष्ठ मूंगा जापान का होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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