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________________ ★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ १४७ खरीदते हैं कि यह नग ठीक नहीं है या असली नहीं है, चाहे वह असली ही हो या घटिया, सस्ता, महँगा नग करके बातें बनाएँगे। वे यह नहीं सोचते कि सामने वाले का मन कितने पैसे खर्च करने का है। क्योंकि लोग पैसा कम खर्च करके नग उत्तम किस्म का चाहते हैं। १५. व्यावहारिक सत्य है कि जड़ाऊ आभूषणों को खरीदते समय राशि नहीं देखी जाती बल्कि पसन्द तथा सुन्दरता देखी जाती है और बहुमूल्य जेवर घर के लिए खरीद लिए जाते हैं परन्तु राशि के लिए व्यक्ति छह बार सोचता है क्योंकि उसको अपने ग्रह का उपाय करना होता है परन्तु आभूषणों एक सम्पत्ति बन जाती है जबकि ग्रह उपाय की अवधि के बाद व्यक्ति पहनना तो दूर, घर में रखने पर भी वहम करता है। १६. मैं आपको एक बात अच्छी तरह स्पष्ट कर दूं कि कुछ धूर्तों का छिपा हुआ मतलब यह होता है कि व्यक्ति उनसे नग खरीदे या वो जिनको बताएँ उनसे खरीदे ताकि कमीशन बने या कभी-कभी अगले पर रौब या अहसान जताने हेतु भी ऐसी बात बताई जाती है। क्या आपने कभी एक बात सोची है, जो व्यक्ति विवेकशील हैं या जिनके पास काम की कमी नहीं है वे ऐसी तुच्छ बातें ना तो करते हैं और न ही उनके पास फुर्सत होती है। १७. वास्तविकता तो यह है कि उपरोक्त धूर्त लोगों की दूसरों के काम में अपने फायदे के लिए टांग अड़ाने की आदत है परन्तु यदि इनके आगे सिन्थेटिक नग, असली में मिलाकर या अलग से रखकर दिखाया जाए तो पहचान नहीं पाएंगे। १८. रत्नों को कई जगह कच्ची रत्ती १२० मि.ग्रा. या १८० मि.ग्रा. पक्की रत्ती के हिसाब से तोला जाता है। रेट में भी फर्क पड़ जाता है। जैसे पक्की रत्ती में किसी का मूल्य १०० रु. रत्ती है तो कच्ची रत्ती में ६० रु. रत्ती होगा। इसी प्रकार ९०० मि.ग्रा. का पक्की रत्ती में ५ रत्ती वजन होगा जबकि कच्ची रत्ती में ७.५ रत्ती वजन होगा। पुराने समय में कच्ची रत्ती/माशा का प्रचलन था। १९. पूरे भारतवर्ष में नग ट्राई के लिए कम से कम ३ दिन के लिए दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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