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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
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से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं । अतः शिशु जन्म लेते ही उन ग्रह नक्षत्रों की छाया से प्रभावित हो जाता है। शिशु जन्म के समय जिन ग्रह नक्षत्रों की किरणों से प्रभावित होता है वह प्राणी अपने सम्पूर्ण जीवन काल में उन्हीं ग्रह नक्षत्रों या तारा पृथ्वी के जितना ही समीप होता है वह पृथ्वी को पृथ्वी के प्राणियों व वस्तुओं को तथा वनस्पतियों को अपनी किरणों से उतना ही अधिक प्रभावित करता है । दूर स्थित ग्रह नक्षत्रों व तारों की किरण भूमण्डल पर आते-आते क्षीण हो जाती है, अतः इनका प्रभाव कम हो जाता है ।
मनुष्य के जीवन संचालन में ग्रहों की किरणों का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक ग्रह की किरणें प्रत्येक मनुष्य को हर समय लाभ पहुँचायें या हानि । अतः ग्रहों की किरणों के प्रभाव न होने से मानव ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सृष्टि ही हीनता से ग्रसित हो जाती है । कभी-कभी एक से अधिक ग्रह की किरणों का प्रभाव पड़ता है जो सामूहिक रश्मियों के होने के कारण लाभदायक भी हो सकता है और हानिकारक भी ।
अतः विभिन्न प्रकार के रत्न विभिन्न ग्रहों की किरणों को अपने में शोषित करने की क्षमता रखते हैं। कौन सा रत्न किस ग्रह की किरणों को प्रभावहीन करने की क्षमता रखता है; यह ज्ञान विद्वानों द्वारा विशेष अनुभवों व अनुसन्धानों के द्वारा निश्चय किया जा चुका है। अतएव आज के वैज्ञानिक युग में ही नहीं अथवा ऐतिहासिक काल से ही ग्रहों के कष्ट को दूर करने के लिए हम रत्नों को धारण करते आये हैं ।
रत्नों के विषय में पुराणों का कथन
स्वर्गलोक की मणियाँ
स्वर्गलोक की मणियों के चार प्रकार हैं - १. रुद्रमणि, २. स्यमन्तकमणि, ३. चिन्तामणि और ४. कौस्तुभमणि । सर्वप्रथम यही चार मणियाँ उत्पन्न हुई और इन्हें चार देवों ने धारण कर लिया ।
रुद्रमणि – रुद्रमाली स्वर्णमय, ऊर्ध्वसूत्र, तीन धार की पीत वर्ण और वैश्य जाति की है। इसके स्वामी भगवान् शिव शंकर है। सोने के समान इस
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