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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ समान श्याम रंग का होता है। उस पर सोने की छींटा होता है। चिकनी
और शुभ घाट की मणि अच्छी होती है। यह विशेषकर लंका में द्रोणगिरी पर प्राप्त होती है। घने जंगलों सर्प के स्थानों, भरतपुर के वनों व हिमालय
और सिन्धु नदी के किनारे इसकी अधिक खाने हैं। इसमें दोष निम्न हैंगड्ढ़ा, धब्बा, चीर, दोरंगी, काला बिन्दु आदि। यह मणि सात दोषों को दूर करती है। दोष रहित वर्तकमणि मंगलवार के दिन धारण करने से इससे बहुत लाभ होगा तथा भय रोग भूत-प्रेत आदि कष्ट दूर होगा। नीले वर्ण की इस मणि में स्वर्ण छींटे होने पर वह द्रोणाचार्य की होने से श्रेष्ठतम मानी गयी है।
लाजावर्त के संग दो प्रकार के होते हैं-(१) संग बादल (२) संग मूसा।
संग बादल-यह श्याम रंग का चिकना होता है। यह लंका, मक्का मदीना, तुर्किस्तान, नर्मदा आदि स्थानों में होता है। अच्छा गुण वाला संग हृदय रोग को दूर करता है।
संग मूसा-इसका रंग काली घटा के समान होता है। चौड़ापन लिये चिकना होता है। यह संग ढुंढार देश में पैदा होता है। यह तखत सिंहासन, महल, मकान मूर्ति आदि में काम आता है। साफ अंग वाला चिकना संग विशेष गुण वाला होता है।
मासर मणि या एमनी (Agate, Eye Agate)
मासर मणि या एमनी सफेद, लाल, पीली और काली चार वर्ण की होती है। इसके स्वामी असुर होते हैं। यह सिन्धु नदी, नर्मदा, तुर्किस्तान, खम्भात, विन्ध्य, बगदाद आदि स्थानों पर पायी जाती है। यह सब रंग वाली चमक व चिकनाई लिये कमल के पुष्प समान होती है। मासरमणि दो प्रकार की होती है। जो अग्नि तथा जल राशि की होती है। अग्नि वाली मणि को सूत में लपेटकर आग पर रखने से सूत नहीं जलता। जल वाली मणि दूध से जल अलग कर देती है। यह बकरी के कलेजी के समान होती है। अच्छे घाट और चमकदार चिकनी एमनी मणि शुभ होती है। इस मणि को पहनने से
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