________________
१२४
* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * कामदेव है। यह बहुरंगी और मधु जैसे होती है तथा तेल, दूध, जल में मिलाकर अधिक चमकती है। इसमें सफेद, लाल, हरे, नीले, पीले रंग के बिन्दु होते हैं। इसमें जाला, गड्ढा, चीर, काला बिन्दु ये चार दोष हैं। अतः ऐसी मणि नहीं धारण करनी चाहिये। दोषरहित मणि धारण करने से ईश्वर में भक्ति, प्रेम और आत्मोन्नति होती है। योगी को योग भक्ति और गृहस्थ को वैराग्य प्राप्त कराती है।
ओपल मणि के संग दो प्रकार के होते हैं-(१) संग अबरी (२) संग अनूबा।
संग अबरी-यह खाकी, मटिया रंग का विचित्र सा चिकना, भारी और नरम होता है। जो हिमालय, विन्ध्य, मुलतान, नर्मदा, गंगा, ताप्ती में पैदा होता है।
संग अनूबा-यह सफेद, खाकी, कुछ मैला रंग का और चमकदार होता है। जो आबू, विन्ध्य हिमालय पर्वतों में पैदा होता है।
स्फटिक मणि (Crystal) स्फटिक एक ऐसा उपरत्न है जो प्रचुर मात्रा में मिलता है। कटिंग और पॉलिश के पश्चात् यह काफी आकर्षक हो जाता है। स्फटिक को कांचमणि, बिल्लौर तथा अंग्रेजी में क्रिस्टल (Crystal) या क्वार्ट्ज भी कहा जाता है। स्फटिक को शुक्र रत्न और हीरे का उपरत्न माना गया है। यह पारदर्शी रत्न होता है।
स्फटिक आग्नेय शिलाओं, लाइम स्टोन तथा ग्रेनाइट शिलाओं की दरारों से प्राप्त होता है। विदेशों में यह ब्राजील, मेडागास्कर, जापान, अमेरिका, स्विट्जरलैंड के आल्प्स पर्वत, फ्रांस तथा हंगरी में प्राप्त होता है। भारत में स्फटिक हिमालय पर्वत के बर्फीले पहाड़ों से प्राप्त होता है। यह भारत के उत्तरी प्रदेशों यथा-कश्मीर, कुल्लू, शिमला, लाहोल स्फीति, मध्य प्रदेश के सतपुड़ा तथा विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी के कुछ भागों में भी प्राप्त होता है।
स्फटिक का उपयोग कई रूपों में होता है। चश्मों के लेंस बनाने में इसका उपयोग किया जाता है । साधारण काँच के ग्लासों पर जल्दी ही खरोंच
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org