________________
१२२
★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * कावेरी, बर्मा, वेगनदी कामरूप, लंका आदि जगहों पर होता है।
___ संग धुनैला-यह धूम्रवर्ण, साफ चिकना और चमकदार होता है। यह बर्मा श्याम, ईरान, चीन, कोहिनूर और विन्ध्य तथा हिमालय में होता है।
संग पिसतई-यह पीले और काले छींटे का होता है। यह हिमालय, तिब्बत, व विन्ध्य आदि प्रदेशों में मिलता है।
तेलमणि या उदउक तेलमणि को 'उदउक' या 'उदोक' कहते हैं। यह तेल के समान चिकना सूर्योदय के रंग सा लाल, सफेद पीला और काला रंग का होता है। इसकी स्वामिनी पृथ्वी है। सफेद रंग की यह मणि आग में रखने से तुरन्त पीली हो जाती है। श्वेत मणि को कपड़े में रखने से तीसरे दिन पीली हो जाती है। हवा लगते ही या जल में डालते ही पुनः सफेद हो जाती है। यह सब रंग की होती है। अच्छे घाट वाली मणि तेज व बल बढ़ाती है और अंग में सुगन्ध पैदा करती है। मेष के सूर्य में रोहिणी नक्षत्र का चन्द्र होने पर या भौमवार और पूर्णा अथवा जया तिथि होने पर मणि को लेकर खेत में दो गज गड्ढा खोद कर गाड़ दें और मिट्टी से ढंककर उस पर पानी सींच दे तो खेत में बोया बीज बीस गुना लाभ देता है।
तैलमणि के संग दो तरह के होते हैं-(१) संग पितरिया (२) संग गुदड़ी।
संग पितरिया-यह पीला, सफेद और साफ सुनहरी चमकदार होता है जो वर्मा, हिमालय और विन्ध्य में मिलता है।
संग गुदड़ी-यह पीले छींट की तरह अधिक चमकीला होता है जो नेपाल, मदीरा, आबू, चीन और नर्मदा नदी में पैदा होता है।
भीष्मक या अमृतमणि भीष्मक मणि में अमृत रहता है। इसके स्वामी मोहिनी और पवनपति हैं। यह विन्ध्य, हिमालय, महानदी गण्डक, सिन्धु नदी के किनारे होती है। इसका रंग सरसों और तरई के फूल, केले के नये पत्तों, गुलदाउदी के फूल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org