SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * ११७ होते हैं। इनके अतिरिक्त २९ मोहरें भी हैं। ये सभी उपरत्न, संग और मोहरे अपने मूल भूत नवरत्नों के अभाव में उनका काम कर देते हैं। मानव की सधनता, निर्धनता देखते हुये विधाता ने इनका निर्माण किया है। कभी-कभी ये कार्य विशेष में रत्नों से भी अधिक कार्यकारी सिद्ध होते हैं। अत: अब इन उपरत्नों के गुण, भेद, लक्षण आदि पर विचार किया जा रहा है। सूर्य उपरत्न-लालड़ी (Garnet) सूर्य ग्रह स्वामित्व का उपरत्न लालड़ी या माणिक बताया गया है। जो लाल रत्न से उतरकर होता है। इसके तीन संग हैं। जिनके नाम हैं-(१) संग सिंगड़ा (२) संग तामड़ा (३) संग मानिक है। चन्द्र उपरत्न-शंखमुक्तादि (Moon Stone) मुक्ता या मोती की छाया वाले शंख से उत्पन्न मोती उपरत्न असली मोती से आधे गुण वाला होता है। जो 'निमरू' कहलाता है। इसी तरह मोती की जड़ में मोती की सी आभा दीखती है। वह भी मोती की तरह ही लाभकारी है। अत: वह भी उपरत्न में आता है। इसके अलावा शंखजोड़ा इस उपरत्न में आ जाता है। ये कभी-कभी समुद्र से प्राप्त होता है। मंगल उपरत्न-विद्रुममूल (Malachite) विद्रुम या मूंगे की जड़ में जो अलग शाखा निकलती है वह 'संगमूंगी' कहलाती है। जो मंगल का उपरत्न है। इसकी यह शाखा लाल होती है और गाँठ तक बहुत से छेद हो जाते हैं। जो तोल में हल्की होती है और मूंगे के समान ही गुण देती है। संगमूंगी चिकना, मूंगिया रंग, लाल या गुलाबी होता है। इसकी खानें नदी या पूर्व पर्वतों या जंगलों में होती हैं। बुद्ध उपरत्न-पन्ने के संग (Peridot) पन्ने का उपरत्न या टांडा और बेरुसंग नरम, चिकना, चमकदार, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy