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________________ प्रकाशकीय पार्श्वनाथ विद्यापीठ जैनविद्या के क्षेत्र में शोधपूर्ण सामग्री को प्रकाशित करनेवाली एक महत्त्वपूर्ण संस्था है । पूर्व में इसने 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' सात खण्डों में और 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' चार खण्डों में प्रकाशित किया है। इसी क्रम में जैन संघ के इतिहास के प्रकाशन का निर्णय भी लिया गया था। इसी निर्णय के अधीन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के विभिन्न गच्छों के प्रामाणिक इतिहास को तैयार करने का दायित्व डॉ० शिवप्रसादजी को सौंपा गया और उनके द्वारा लिखित 'तपागच्छ का इतिहास' और 'अंचलगच्छ का इतिहास', दो कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। 'खरतरगच्छ का इतिहास' प्रकाशनाधीन है। इसी क्रम में 'स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास' के प्रकाशन का दायित्व मुझे और डॉ० विजय कुमार को दिया गया। जैन समाज में पूर्वकाल में इतिहास लेखन की सुव्यवस्थित परम्परा का अभाव रहा है। यद्यपि व्यक्ति के जीवन चरित्रों को लेकर प्राचीन काल से ही कुछ कार्य होते रहे हैं । यत्र-तत्र विकीर्ण सामग्री में से सुव्यवस्थित इतिहास को तैयार करना एक कठिन कार्य था । स्थानकवासी जैन परम्परा के इतिहास को तैयार करने में हमने यत्र-तत्र विकीर्ण सामग्री का सावधानीपूर्वकं उपयोग किया है । पार्श्वनाथ विद्यापीठ की स्थापना स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के पंजाब परम्परा के आचार्य पूज्य सोहनलालजी की स्मृति में हुई थी। यह निश्चित ही एक खटकने वाली बात थी कि इस संस्था के द्वारा जैन इतिहास के क्षेत्र में अनेक ग्रन्थों के प्रकाशन के बाद भी 'स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास' प्रकाशित न हो । प्रस्तुत कृति के लेखन में डॉ० विजय कुमार ने मेरे साथ रहकर अथक परिश्रम किया । मात्र यही नहीं उन्होंने प्रस्तुत कृति के प्रकाशन की सम्पूर्ण दायित्व को भी वहन किया। इसके लिए विद्यापीठ उनकी आभारी है। हम आभारी हैं श्रद्धेय मुनि श्री मणिभद्रजी 'सरल' के, जिन्होंने इस कार्य को त्वरा से पूर्ण करने के लिए हमें अभिप्रेरित किया । मात्र यही नहीं उनकी ही प्रेरणा से श्री राजेन्द्र कुमार जैन, मुगलसराय; श्री बनवारी लाल जैन, कानपुर व श्री अरूण कुमार जैन और श्री अजीत कुमार जैन, वाराणसी ने अर्थ सहयोग देकर इसके प्रकाशन को सम्भव बनाया है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ मुनि श्री एवं इन दान दाताओं की सदैव आभारी रहेगी । इस कृति के प्रकाशन की इस बेला में हम पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक डॉ० महेश्वरी प्रसाद, सहायक निदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ० अशोक कुमार सिंह, प्रवक्ता डॉ० शिवप्रसाद एवं डॉ० सुधा जैन के भी आभारी हैं। उनका www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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