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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org दीक ही ब-चंद्रकांत ना१सूर्यकांत नागवैर्यना गया सारानी एनी काष्टनी लेना चात्रा मना छ ! सिद्धांतमांहिके हवा कही वे ते देवाडी !! एचे। वासमी बोलथयेो ॥ २४॥ तथा प्रतिमान) चौरासीच्प्रास्यात ना कि हा सुत्र माहिकाही बोजो चोरासीच्या स्थातनाह स्पे तो प्रतीमा आराध्यवश, जो वो रासायास्पातनान ही होय तो प्रती मायारा ध्यान ही सही जाति था सीद्धांतमा हि गुरुप्राचार्यउपाध्यायक ह्या बश्थाभितां मिजो प्राचार्यउपाध्याय का देती श्रस्मात भानू कही बेनं सिद्धांत माही कि हांऽप्रती मायाराध्य न कही तो चोरासाच्या स्थातनान थीक ही अस दांतमाही होय तो देषाडो । एपचचासमा बोलथाय ॥२॥ तवा प्रतिमानी प्रसादना दमानी प्रतीष्टा किही कही बें प्रतीष्टाम्प्राथक करे के साथ करेांवलिया के हेबे प्रतीष्टा श्रावक करे बी जागख कहेजती करोसिद्धांत माहिकामक ऊंबे वेदेषामो॥एवासभा बोलिया॥२६॥ तथा दिगंबरषम् ए) इस केहे प्रती मानगन का म्यानें सेतांबर के हे बघतामा नग्ननकीजें सिद्धांते किमक ऊंबे ते देशा मो। एसतावास मोझालिथयो||२५|| तथा तीर्थ करज) वा रमोदपक तातावारेंण सल की पानी बाला पर्यकन्प्रासनें एकता का सरानी सीज्ञान्यास एह माही प्रतीमा के प्रकारें की जैसिद्धांत माही किमका प्रवास मोबोजथ्यो। २६ ॥ तथाप्रती मानें चएम काल माही का है का नें पूजी सिद्धांत माहि कीमक रुंबई || एवं गणत्री समी बोलायो॥२७॥ नथाप्रतिमा | पूजती कि हा फुलचा कि दानवडे ने वली प्रतिमाने काजें चिश्करी में धोमापेदे नमोनानान व पेहरा
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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