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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org राहरणातथागो तानें मुषेश्मक दफा जे एनिद्रा का दिघेसच्चे एऊनें गणध्रेसाचा कया तो तेजी आपण नेत्रप्राराध्यथयो न ह || तथागरेश्म करूंजेगो सालाना श्रावक एहवाले राहतदेवताप्रमाणी ऊस सगा तो गणधरेंश्म करूंजेगा सालानाश्रा व कनेंगी सालोज हंत देवळे परागणधरेंइम स्पेन कल्पो जेगोसा लाना श्राव कनें गोसालो कुदेव बोए तलेंइमजा एजो जे लोक मांही जेपदार्थजे वाहते जेतेपदार्थगपण तिमज कहो तथा ग्यान्पातानी वृतिनो पावली बरी तेतिमा हिश्मकरूं जेएकदाच नाश एह बजे जी ए एडि मागणंकरेति एतावत् दृश्यते। जिन मिमानी अर्चना किधी 'एत सुंज दी सेना पणजी ए घरे। इत्यादिकखोल कद्यानथाह वडजे प्रवर्त्तननेंते प्रत वा वाले तरागाटाणा दी से बकाया है। श्तेचा चारा जो ज्यो तथा केत लाइकश्म कखश जेडुध्दा इनारदने । इमका जेन्यसंनए वीर । इत्पा दिए बोल सम्यकदृष्टिवत्री ककरणजाणे ते बोल मिध्याती गौतम स्वामीर्नेयण मकऊंबें तेल भीइंबरे तएतेचयाजिशोवल गवं गोयमोतिले वडवागतोत्तगवंगो यमा एवं क्या सीखने प्रजोती वा हंतावा हे प्रसंजराप्रवारया पडिया पञ्चखायापाव कम्मोस किरिया बुडे एगनदंको एग नबालेयावास वहा एहवा बोल का ब श्रीमती सूत्रारमें सतके व्यावउदे सैंट तथा स्त्रि वरसगवंत ने यमिथ्यात्विश एहवा बोलक बातएतेन्नउचिया। जिऐवघे रात्त गवंतो तिऐवज्वागलं तिते घेरेलगवंत । एवं वयासी | उसे प्रजोत
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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