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परिशिष्ट सकुमार बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए णिस्सेयसिए हियसुह अणुकंपिए णिस्सेसकामए, से तेणणं गोयमा ! सम्मदिट्ठी, भवसिद्धि, परित्तसंसारी, सुलहबोही, आराहए, चरमे । " श्री वीतरागे इम न कहिउं जे "प्रतिमा पूजतां जीव समकित लहइ ।” अथवा केणई लाधं हुइ तउ देखाड़। साधु चरित्रीयानां रूप देखी घणे जीवे समकित लाघां, अथवा पूर्वभवनां सम्यक्त्व उदय आव्यां परितसंसार कीधां, अथवा वली जीवना अनुकंपा थकी परित्तसंसार कीधां, ते जघन्यइं तउ अंतर्मुहूर्तमाहिं सीझइ । ते उतकृष्टउ तउ अर्द्ध पुद्गल (परावर्त) माहिं सीझइ । हवइ प्रतिमा पूजतां कोणई जीवइं सम्यक्त्व लाधउं, अथवा परित्तसंसार कीधु हुई, ते सिद्धान्तमाहिं देखाड़उ। एह च्यालीसमु बोल।
४१. एकतालीसमु बोल
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हवइ एकतालीसमु बोल लिखीइ छइ । श्री आचारांग मूलसूत्र माहिं साधु चारित्रीयानइं पांच महाव्रत कह्या छ । एकेका व्रत नी पांचभावना बोली छई । जिम आचारांग मांहि तिम श्री प्रश्नव्याकरण माहिं व्रताव्रतनी पांच भावना बोली छई । अनइ श्री आचरांगनिर्युक्ति अनइ वृत्तिमाहिं कहिउं जे " समकितनी भावना भावीइ तेह भावना लिखीइ छइ - तीर्थंकरनी जन्मभूमि चारित्रभूमि, ज्ञान उपजवानी भूमि निर्वाण मोक्ष गयानी भूमि, तथा वली देवलोक, तथा मेरु पर्वत तथा नंदीसरवरद्वीपादौ तथा शाश्वती प्रतिमा, तथा वली अष्टापद शत्रुंज गिरीनारि, तथा अहिछतायां श्री पार्श्वनाथनई धरणेन्द्रनउ महिमा, एवं तथा पर्वतरं वयरस्वामिनां पगलां, श्री वर्द्धमानी चमरेन्द्रइं निश्रा कीधी तेह ठामई तीर्थ कह्यां, एतलां सघला तीर्थनी भावना भाविइ ।” निर्युक्त मांहिं वृत्तिमाहिं कहिउ, अनइ श्री आचारांगमाहिं नथी, तु श्री आचारांगनी निर्युक्ति वृत्तिमाहिं किहां थकी आव्या ? इम कहई छई । निर्युक्ति- वृत्तिई सूत्रना अर्थ कह्या छ । आचारांगमाहिं एक कीहा आलावानउ अर्थ तेहमाहिं एतलां ठाम वंदनीक कहियां, अनइ श्री वीतरागई गणधरई तु न कहियां, जे जे प्रतिमा प्रासादना ठाम मूलसूत्रमाहिं किहां दीसता नथी । विवेकी हुइ ते विचारी जोज्यो । एह एकतालीसमु बोल। ४२. बड़तालीसमु बोल
हवइ बइतालीसमु बोल लिखीइ छ । हवड़ांना श्रावकनई परिग्रहप्रमाण दिई । छईं, तिहां एहवा नीम दिई छई- “प्रतिमा वांद्या पूज्या पाखइ जिमुं तु नीम भंगई एकासणुं करुं । अथवा वली प्रतिमानइं वरस १ प्रति आंगलूहणां ४ च्यारि, सूक्राडि सेर ४ च्यारि, सोपारी सेर ४ च्यारि, दीवेल सेर १० दस, फूल लाख १, नवुं धान, नवं फूल मुंडइ तु धालुं, जो प्रतिमा आलि ढोयुं होइ ।" एहवा नीम श्रावकनई दिई छ । अनइ श्री आणंद श्रावकतई परिग्रहप्रमाणमाहिं प्रतिमानइ विहरइ एहवा नीम नहीं। तेह स्युं कारण ? तु इम जाणीइ छइ प्रतिमा वीतरागनई मार्गइं नथी । जु श्री वीतरागनई मार्गइं प्रतिमा हुइ तु आणंद श्रावकनई एहवा नीम जोइइ । एह बइतालीसमु बोल ।
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