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________________ परिशिष्ट २२. बावीसमु बोल हवइ बावीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री जीवाभिगम मध्ये नंदीसरवरनइ अधिकारइं तीर्थंकर ना कल्याणकादि कनई कारणई घणा एक देवता एकठा मिलइ, मिल्या हुंता क्रीड़ा करई । इम अष्टाह्निका महोत्सव करई । एतली देवतानी स्थिति दीसइ छ । तथा मागध वरदाभ प्रभास १०२ तीर्थोदक, तीर्थनी माटी ल्यावइ छइ । तथा गंगा सिंधु आदि देइ नदीनइ विषय जइ जलइ ल्यावई छइ । तथा द्रह न उदक ल्यावइ छइ । ए आदि दे नइ देवतानी गाढ़ी घणी सूत्रे स्थिति दीसइ छ । केतली एक लिखी । जोउनई गंगानां गंगोदक, गंगानी माटी, द्रह ना उदक आण्या माटर, कांई गंगा अथवा दह अथवा एह तीर्थ मोक्षनइ न खातइ न थयां। इम देवतानी स्थिति घणीइ छइ । डाहु हुइ ते विचारी जोज्यो । एह बावीसमु बोल । २३. त्रेवीसमु बोल ५२१ हवइ त्रेवीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा प्रतिमा ना थापक कहइ पूछीइ छइ जे,“प्रतिमा केही अवस्था नी करी मांडी छइ ? श्री महावीर तउ पहिलं ३० वरस गृहस्थपणइ हता, पछइ वरस ४२ चारित्रीआ हता । ते हवइ पूछीइ छइ - "जिको श्री महावीर नी प्रतिमा करी मांडइ छइ, ते केही अवस्था नी करी मांडइ ?" जउ इम कहइ जे "अम्हो गृहीनी अवस्था करी मांडऊं छऊं।" तउ चारित्रीया नइ वंदनीक टलइ, गृहीनई तउ चारित्रीओ वांद नहीं । अनइजे इम कहइ जे "अम्हो चारित्रीया नी अवस्था करी मांडऊं छऊं।" तउ जोउनइं ए प्रतिमा मांहिं चारित्रीयानुं स्युं लक्षण छइ । चारित्रीयानइं तउ फूल पाणी आभरण एकू न कल्पइ। अनइ प्रतिमा तउ फूल पाणी आभरण इत्यादि घणां वानां सहित दीसइ छ । डाहा हूइ ते विचारी जोज्यो । जेहन वंदना कीजइ तेहनई विणओलखिइ किम वांदीइ ? मोक्षमार्गइं तु आराध्य गुण छइ । पणि मोक्षमार्ग आकार आराध्य नथी । जिम चारित्रीओ गुणवंत हुइ, अनइ सहू श्रावकादिक ते चारित्रीआ गुणवंतनई वांदइ । कदाचित् कर्मयोगिइ चारित्र मग्न थयुं हुंतउं, सीतोदक सचित्तादिक सेवइ, अनइ लिंग हुई। तउ हुइ, पणि तेहनई कां डाहु हुइ ते वांदइ नहीं । एतला भणी जे गुणहीण थयु। तउ जोउनई “जेह मांहिं ज्ञान, दर्शन, चारित्र नु एकु गुण नहीं तेन किम वांदीइ ?” सिद्धान्त मांहिं मोक्षमार्गइं वंदनीक गुण छई । विवेकी हुई ते विचारी जोज्यो । एह त्रेवीसमुं बोल । 1 २४. चडवीसमो बोल Jain Education International हवइ चउवीसमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री वीतरागई सिद्धान्त मांहिं प्रतिमा आराध्य न कही, अनइ जिको प्रतिमा आराध्य कहइ छइ, तेह कन्हइ एहवा एहवा बोल पूछीइ छइ । ते बोल लिखीइ छ- " प्रतिमा स्याहनी कराववी कही छइ ? चन्द्रकांत नी ? सूर्यकांतनी ? वैडूर्यनी ? पाषाणनी ? सप्त धातनी ? काष्ठनी ? लेपनी ? चीतारानी ? सिद्धान्त माहिं केहवी कही छइ ?" एह चउवीसमु बोला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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