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________________ ४९० वि० सं० स्थान मन्दसौर इन्दौर अजमेर २०१७ २०१८ २०१९ २०२० ब्यावर २०२१ मदनगंज स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास वि०सं० २०२२ २०२३ २०२४ स्थान मन्दसौर जावरा उज्जैन २०२५ रतलाम २०२६ से २०३४ तक रतलाम मुनि श्री केशरीमलजी आप जावरा निवासी थे। वि०सं० १९६३ में आचार्य श्री खूबचन्दजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपको द्रव्यानुयोग का अच्छा ज्ञान था, ऐसा उल्लेख मिलता है। मुनि श्री सुखलालजी आप जीरण के रहनेवाले थे। वि० सं० १९५७ में आप आचार्य श्री खूबचन्दजी के कर-कमलों से दीक्षित हुये । आप एक अच्छे अध्येता थे। मुनि श्री हरखचन्दजी Jain Education International आप का निवास स्थान बड़ी सादड़ी है । वि० सं० १९६४ मार्गशीर्ष वदि द्वितीया को आप आचार्य श्री खूबचन्दजी के शिष्य बने । मुनि श्री हजारीमलजी आपका जन्म जावरा निवासी कटारिया गोत्रीय ओसवाल परिवार में हुआ था। वि०सं० १९६५, कार्तिक पूर्णिमा को छोटी सादड़ी में आचार्य श्री खूबचन्दजी के शिष्यत्व में आप दीक्षित हुये । शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। वि० सं० १९९१ माघ सुदि त्रयोदशी को आप संघ के 'प्रवर्तक' पद पर सुशोभित हुये । मुनि श्री गुलाबचन्दजी आप जन्म जावरा में हुआ । वि० सं०.१९६७ में आप मुनि श्री कस्तूरचन्दजी के शिष्य बने । मुनि श्री छब्बालालजी आपका जन्म मन्दसौर में हुआ । वि० सं० १९७८ में मन्दसौर में ही मुनि श्री छोटूलालजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये । दीक्षोपरान्त आपने १ से लेकर २३ तक की लड़ी की तपस्या की तथा १५,३०,३१,३३,४१,४७, ४८, ४९, ५० और ५१ दिनों के दो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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