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________________ ४८८ वि०सं० स्थान १९९९ उदयपुर २००० ब्यावर २००१ मन्दसौर २००२ २००३ २००४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास वि० सं० पालनपुर जामनगर बरावल और वडिया भावनगर अहमदाबाद २००५ २००६ २००७ जयपुर २००८ दिल्ली २००९ कानपुर २०१० कलकत्ता २०११ झरिया २०१२ कलकत्ता २०१३ बालोतरा २०१४ खाचरौंट २०१५ सिकन्दराबाद २०१६ बैंगलोर मुनि श्री कस्तूरचन्दजी २०१७ २०१८ २०१९ २०२० २०२१ २०२२ २०२३ २०२४ स्थान मद्रास बैंगलोर बम्बई (फोर्ट) कपासन जोधपुर चित्तौड़गढ़ उदयपुर अहमदाबाद २०२५ सूरत २०२६ बम्बई (विले पार्ले) २०२७ बम्बई (फोर्ट) २०२८ इन्दौर २०२९ दिल्ली २०३० दिल्ली (चाँदनी चौक ) २०३१ ब्यावर २०३२ जावरा २०३३ जावरा आगे की सूची प्राप्त नहीं हो सकी है। आपका जन्म वि०सं० १९४९ ज्येष्ठ वदि त्रयोदशी को जावरा में हुआ । आपके पिता का नाम श्री रतिचन्द और माता का नाम श्रीमती फूलीदेवी था । वि०सं० १९६२ कार्तिक सुदि त्रयोदशी को आचार्य श्री खूबचन्दजी के प्रथम शिष्य के रूप में दीक्षित हुये। दीक्षोपरान्त आपने आगमों का गहन अध्ययन किया। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, करणानुयोग और चरितानुयोग का आपको विशिष्ट ज्ञान था। ऐसी जनश्रुति है कि आपकी प्रवचन शैली इतनी मधुर थी कि श्रोता भावविभोर हो जाते थे । आचार्य श्री मन्नालालजी के 'शताब्दी महोत्सव' पर रतलाम में श्रीसंघ द्वारा आप शासन सम्राट की पदवी से विभूषित किये गये । आपका स्वर्गवास वि० सं० २०३४ में रतलाम हुआ। वि०सं० ० २०२५ से २०३४ तक रतलाम में आपका स्थिरवास हो रहा । आप द्वारा किये गये चातुर्मासों का विवरण निम्नवत है में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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