________________
४०६
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास व श्रावकों को ११५ से अधिक शास्त्र, ग्रन्थ, चौपाईयाँ, थोकड़े आदि की प्रतियाँ प्रदान की थीं। वि० सं० १८९० फाल्गुन कृष्णा अष्टमी को आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री सूरजमलजी
आपके जीवन के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आपका जन्म रतलाम में हुआ। मुनि श्री परशरामजी के सान्निध्य में आपने दीक्षा ग्रहण की थी। १२ वर्ष तक तपश्चर्या की और थान्दला में समाधिपूर्वक आप स्वर्गस्थ हुये। मुनि श्री दीपचन्दजी
आपका जन्म राजस्थान के डूंगर (वर्तमान डूंगरगढ़) के पेटलावद ग्राम के निवासी श्री वगताजी कटकानी जो ओसवाल जाति के थे, के यहाँ वि०सं० १८६३ या १८६४ में हुआ। २० वर्ष की आयु में आपका सम्पर्क उज्जैन शाखा के आचार्य श्री दल्लाजी से हुआ। आचार्य श्री का प्रवचन सुना । प्रवचन सुनने के पश्चात् मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और आप दीक्षित होने के लिए आचार्य श्री दल्लाजी के पास थान्दला पहँच गये। माँ को जब पता चला तो वे किसी तरह मनाकर आपको पेटलावद ले आयीं। किन्तु आप वैराग्य के रंग में रंग चुके थे। विवाह का प्रलोभन भी जब आपको संसारपक्ष की ओर न मोड़ सका तो माँ ने दीक्षा की अनुमति दे दी। अनुमति पाकर वि०सं० १८८३ या १८८४ में आपने रतलाम शाखा के मुनि श्री परशरामजी से लीम्बड़ी में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होने के पश्चात् आपने गहन शास्त्राभ्यास किया। आप सामायिक,पौषध आदि पर विशेष बल देते थे। वि० सं० १९१३ में चातुर्मास सम्पन्न करने के पश्चात् आपने जावरा की ओर प्रस्थान किया। जावरा में ही वि०सं० १९१३ फाल्गुन कृष्णा द्वितीया दिन मंगलवार को संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री गिरधारीलालजी
आपका जन्म वि० सं० १९१२ में बड़नगर ग्राम के ओसवाल परिवार में हुआ। आपके माता-पिता का नाम उपलब्ध नहीं होता है। मुनि श्री हिन्दुमलजी से आपने दीक्षा ग्रहण की। बहुत कम समय में ही आप उत्कृष्ट क्रियानिष्ट सन्त के रूप में प्रसिद्ध हो गये। आपके तीन शिष्य हुए- मुनि श्री गम्भीरमलजी, पूज्य आचार्य नन्दलालजी और मुनि श्री वृद्धिचन्दजी। वि०सं० १९५७ मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को ४५ वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री स्वरूपचन्दजी
आपका जन्म वि०सं० १९०६ में बदनावर ग्राम के निवासी श्री रामचन्द्रजी ओसवाल नामक श्रावक के यहाँ हुआ । आपकी माता का नाम श्रीमती मानीबाई था। २६ वर्ष की अवस्था में आप पूज्य श्री मयाचन्दजी के शिष्य दानाजी से वि०सं० १९३३ में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org