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________________ ३०४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास में आपको संघ की गद्दी प्राप्त हुई और वि० सं० १८८८ माघ सुदि द्वितीया को लीम्बड़ी में गादीपति हुये। वि० सं० १९१४ पौष सुदि नवमी को लीम्बड़ी में ही आप स्वर्गवासी हुये। आचार्य श्री देवजी स्वामी आपका जन्म वि०सं० १८६० कार्तिक सुदि में सौराष्ट्र के बांकानेर ग्राम में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री पूजाभाई था। वि०सं० १८७० पौष सुदि अष्टमी को रायर (कच्छ) में आपने आहती दीक्षा ली। वि०सं० १९१४ में संघ के गादीपति बने और वि०सं० १८१८ माघ सुदि द्वितीया को आप आचार्य पद पर विराजित हये। वि०सं० १९२० ज्येष्ठ सुदि अष्टमी को लीम्बड़ी में आप स्वर्गस्थ हुये। आपके १३ शिष्य थे। गादीपति श्री गोविन्दजी स्वामी आपका जन्म वि०सं० १८६७ माघ सुदि में पूर्व कच्छ के आघोई ग्राम के वीसा ओसवाल परिवार में हुआ। वि०सं० १८७९ के वैशाख सुदि नवमी को आप दीक्षित हुये। वि० सं० १९२० में आपको संघ की गद्दी प्राप्त हुई और वि०सं० १९२१ माघ सुदि चतुर्थी को लीम्बड़ी में आप गादीपति पद पर सुशोभित हुये। वि०सं० १९३५ मार्गशीर्ष सदि नवमी को लीम्बड़ी में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके तीन शिष्य थे। आचार्य श्री कानजी स्वामी आपका जन्म वि०सं० १८७४ श्रावण सुदि को गुंदाला (कच्छ) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री कोरशी भाई छावड़ा तथा माता का नाम श्रीमती मूलीवाई था। वि० सं० १८९१ पौष सुदि दशमी को मांडवी (कच्छ) में आप दीक्षित हुये। वि०सं० १९२१ में संघ के गादीपति बने। वि०सं० १९३५ में गादीपति श्री गोविन्दजी के स्वंगवास के पश्चात् लीम्बड़ी में श्रीसंघ ने आपको आचार्य पद पर विभूषित किया। लीम्बड़ी में ही वि० सं० १९३६ माघ वदि पंचमी को आप स्वर्गस्थ हुये। आपके दो शिष्य थे । शिष्यों के नाम उपलब्ध नहीं हैं । गादीपति श्री. नथुजी स्वामी ___ आपका जन्म वि०सं० १८७६ में रायण मांडवी कच्छ में हुआ। आपके पिता का नाम श्री केशवशा फुरिया व माता का नाम श्रीमती मुरांदेबाई था। आप जाति से वीसा ओसवाल थे। वि०सं १८८५ में कार्तिक वदि सप्तमी को मांडवी (कच्छ) में आप दीक्षित हुये। वि०सं० १९३६ में आप गादी के अधिकारी बने और वि०सं० १९३७ पौष वदि त्रयोदशी दिन गुरुवार को लीम्बड़ी में आपको श्रीसंघ ने गादीपति पद पर विराजित किया। वि०सं० १९४० श्रावण वदि अष्टमी को लीम्बड़ी में आपका स्वर्गवास हो गया। ऐसा कहा जाता है कि आपने अपनी मृत्यु से ८ दिन पूर्व ही श्री जीवनजी स्वामी (बड़े) आदि साधुओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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